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तत्त्वाचितलांग:
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भूभ्रमणवादी कह रहा है कि भूगोलका भ्रमण हो रहे सन्ते अधःपतनशील समुद्र जल . आदिक गिरते हुये भी स्थित हो रहे के समान ही दीखते हैं। क्योंकि उस जलका उस भूमिके अभिमुखपने करके पतन हो रहा है। सम्पूर्ण भारी पदार्थोंका भूमिके अभिमुखं नहीं हो करके पतन होना । नहीं देखा जाता है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार तो नहीं कहना ।क्योंकि गुरुपदार्थोका जहां स्थित है, वहांसे ठीक परली ओर नीचे गिरना देखा गया है तथा तुम्हारे पक्षका बाधक दूसरा अनुमान यह है कि समुद्रजल, लोहगोलक, फल आदि पदार्थ ( पक्ष ) यदि स्वस्थानसे च्युत हो जाय तो अवश्य ठीक नीचे पड जाते हैं (साध्य ) इधर उधरसे बलवान् प्रेरक पदार्थका शब्द जनक अभिघातनामक संयोग या प्रतिकूल वायु आदिका अभाव होते ते भारी होनेसे ( हेतु ) डेल, मेघजल, आदिके समान' ( अन्वयदृष्टान्त )। उस समुद्रजलमें शद्बहेतु संयोग अथवा पुरुषप्रयत्न, विद्युत् प्रयत्न, आदि द्वारा किया गया कोई शब्दहेतु हो रहा प्रेरक संयोग तो नहीं है, जिससे कि भूमिपर रखे हुये जलकी दूसरे प्रकारसे यानी भूमिसे परली ओर नहीं गिरकर भूमिमाऊं ही जलकी गति हो जाय । तथा इस अनुमानमें दिये गये गुरुत्व हेतुका गेंद या बन्दूककी गोली आदिसे व्यभिचार नहीं हो सकता है। क्योंकि हमने हेतुका विशेषण " अभिघात आदिकका अभाव होते संते " यह दे रक्खा है । वेगवाले हाथ द्वारा भूमिमें । चोट खाकर नीचे नहीं गिरती हुई गेंद ऊपरको उछल जाती है । बन्दूककी गोली तिरछी चली जाती है, कबूतर ऊपरको उड जाता है, इनमें अभिघात आदि कारण हैं, जहां अभिघात आदि नहीं है। वहां गुरुपदार्थीका अवश्य अधःपात हो जाता है । हमारा दिया हुआ डेल आदि दृष्टान्त भी साध्य "
और साधनसे रीता नहीं है। क्योंकि पूर्वमें कहे जा चुके अनुसार अभिघात आदिकका अभाव इस । विशेषणसे युक्त हो रहे गुरुत्व हेतुकी डेल आदिमें प्रसिद्धि हो रही है और पूर्वसंयुक्त स्थानसे प्रतिकूल परली ओर नीचे गिर जाना इस साध्यकी भी डेल आदिमें प्रसिद्धि है। तिस कारणसे युक्तियों । द्वारा जान लिया जाता है कि ऊपर, नीचे, पृथिवीका भ्रमण मान रहे। वादीके समीन यह ग्रहोंकी आकर्षणशक्ति अनुसार पृथिवीका तिरछा या टेढा, मेढा, भ्रमण " माननेवाला वादी भी सत्यवचन कहनेवाला नहीं है। एक बात यह भी समझ लेनेकी है कि
भूभ्रमागमसत्यत्वेऽभूधमागमसत्यता। किं न स्यात्सर्वथा ज्योतिचिसिद्धरभेदतः । १०॥ द्वयोः सत्यत्वमिष्टं चेत्काविरुद्धार्थता तयोगा।
प्रवक्त्रोराप्तता नैवं सुगतेश्वरयोरिव ।।।११
जिन्होंने आर्यभट्ट या इटली, योरोप, आदि देशोंके वासी विद्वानोंकी पुस्तकोंके अनुसार भू का भ्रमण स्वीकृत किया है, उनके प्रति हमारा यह आक्षेप है कि यदि भूभ्रमणका प्रतिपादन करने