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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
और ज्योतिर्मण्डलको घूम रहा माना जायगा। अतः भूभ्रमणके सिद्ध करनेवाले तुम्हारे हेतुको विरुद्ध हेत्वाभासपना बन रहा है। भूगोलके भ्रमणको समझानेमें दिये गये हेतुके साध्य या पक्षमें अनुमान आदि प्रमाणों द्वारा बाधा उपस्थित हो जानेसे उस हेतुको बाधित हेत्वाभासपनका प्रसंग आता है। प्रत्यक्षसे भी भूभ्रमण बाधित है। पक्षी या विमान मीलों ऊंचे या हजारों कोस तिरछे चलकर वहांके वहीं नियत स्थानपर लौट आते हैं। उत्तर दिशामें ध्रुवतारा वहांका वहीं दीखता रहता है । यदि कोई यों कहे कि घुमानेवाले कारणोंका अभाव हो जानेसे ज्योतिश्चक्रका भ्रमण नहीं हो सकेगा । सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र आदि जहांके तहां बैठे रहेंगे। यों कहनेपर तो हम जैन यह उपपत्ति देते हैं कि तिस प्रकारके पुण्य, पापकी, विचित्रतासे उन सूर्य आदिकोंका भ्रमण बन जाता है। किन्हीं किन्हीं कोके फल विचित्रतासे अनुभवे जाते हैं । गमन पर्यायमें ही रमण कर रहे अभियोग्य जातिके देवों करके ज्योतिष्क विमान नियतगति अनुसार घुमाये जाते हैं ।
भूगोलभ्रमणे तु वायुभ्रमणं न कारणं भवितुमर्हति सर्वदा तस्य तथा भ्रमणनियमानुपपत्तेरनियतगतित्वात् । ततो नाभिप्रेतदिगभिमुखं भ्रमणं भूगोलस्य स्यात् । माण्यदृष्टवशाद्वायोनियतं तथा तदसिद्धेः । प्रसिद्ध भ्रमणमिति चेन्न, तत्कार्यासिद्धौ तदसिद्धेः। प्रसिद्ध हि सुस्वादिकार्ये निर्विवादे दृष्टकारणव्यभिचारे चादृष्टं तत्कारणमनुस्मीयते न चाभिमेतवायुम्रमणं निर्विवाद सिद्धं यतो न दृष्टकारणव्यभिचारे तत्कारणमदृष्टमनुमीयेत ।
हां, तुम्हारे भूगोलके भ्रमणमें तो वायुका भ्रमण कारण नहीं हो सकता है। क्योंकि उस जड वायुके द्वारा सदा उस पृथिवीके तिस प्रकार नियम अनुसार भ्रमण होते रहनेकी उपपत्ति नहीं है। क्योंकि वायुका कोई नियत गति नहीं है । कभी पूर्वकी वायु चलती है । कभी पश्चिमकी वायु बहती है। कभी दक्षिण दिशाकी वायु उमड पडती है । तिस कारण भूगोल का अभीष्ट हो रही ऊर्ध्व दिशा या अधोदिशाके अभिमुख भ्रमण नहीं हो सकेगा। अतः चारो ओर लिपटी हुई वायुके अनुसार भूगोलका भ्रमण मानना स्वयं अपनेको चक्करमें डालना है । यदि कोई यहां यों आक्षेप करे कि प्राणियोंके पुण्य, पापकी अधीनतासे वायुका तिस प्रकार नियत हो रहा भ्रमण हो जायगा । आचार्य कहते हैं कि यह तो नहीं कहना । क्योंकि उस अदृष्टके कार्य · माने जा रहे वायुभ्रमण या पृथिवीभ्रमणकी जबतक सिद्धि नहीं हो सकेगी, तबतक उस वायुभ्रमणके कारण अदृष्ट की सिद्धि नहीं हो पाती है । देखिये, सुख, दुःख आदि अनुभवे जा रहे कार्योंके विवादरहित प्रसिद्ध हो जानेपर ही परिदृष्ट बहुधन, दूध, स्त्री, वस्त्र, हवेली, आदि या ग्रामवास, अल्पकुटुम्ब, अल्पधन, आदि दृष्ट कारणोंका अन्वयव्यभिचार और व्यतिरेकव्यभिचार दोष आ जानेपर तो उन सुख आदिकोंके कारण पुण्य, पापरूप अदृष्टका अनुमान कर लिया जाता है । किन्तु यहां आपको अभीष्ट हो रहा वायुभ्रमण तो सभीको निर्विवादः सिद्ध नहीं है, जिससे कि वायुभ्रमणके दृष्ट कारणोंका व्यभिचार हो जानेपर