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तत्वावचिन्तामणिः
रत्नशर्करावालुकापंकधूमतमोमहातमःप्रभा भूमयो घनांबुवाताकाशप्रतिष्ठाः सप्ताधोधः॥१॥
रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, वालुकाप्रभा, पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा, महातमःप्रभा, ये नीचे नीचे सात भूमियां हैं, जो कि सातों ही घनवातके ऊपर प्रतिष्ठित हैं। घनवात तो अम्बुवातपर स्थित हो रहा है और तनुवातके ऊपर अम्बुवात आधेय है, तनुवातका आधार आकाश है, जो कि महापरिमाणवाला होनेसे स्वमें ही प्रतिष्ठित है । आकाशका आलम्बन कोई दूसरा पदार्थ नहीं है । अर्थात्-जहां अस्मदादिक मनुष्य निवास करते हैं वह रत्नप्रभाका ऊपरला भाग है। यहांसे प्रारम्भ कर दक्षिण, उत्तर, सात राजू लम्बी, एक राजू चौडी और एक लाख अस्सी हजार योजन नीचेकी ओर मोटी रत्नप्रभा है । चूंकि रत्नप्रभाका ऊपरला एक हजार योजन मोटा चित्रांभाग ऊर्वलोकके सात राजूओंमें वट चुका है। अधोलोकके सात राजू रत्नप्रभाके वज्राभागसे प्रारम्भ किये गये हैं । तथा अधोलोकके ऊपरले एक राजूमें सबसे ऊपर रत्नप्रभा और सबसे नीचे शर्कराप्रभा है। अतः रत्नप्रभास दो लाख ग्यारह हजार योजन कमती एक राजू उतर कर प्रारम्भ हुयी दक्षिण उत्तर सात राजू लम्बी, पूर्वपश्चिम एक सही छह बटे सात राजू चौडी और बत्तीस हजार योजन मोटी शर्कराप्रभा भूमि है । शर्करी प्रभासे अट्ठाईस हजार योजन कमती एक राजू नीचे उतर कर मिल गयी सात राजू लम्बी दो सही पांच बटे सात राजू चौडी और अट्ठाईस हजार योजन मोटी वालुका प्रभा अनादि निधन बनी हुई है । वालुका प्रभासे चौवीस हजार योजन कमती एक राजू नीचे उतरकर पा गयी दक्षिण उत्तर सात राजू लम्बी और पूर्व पश्चिम तीन सही चार बटे सात राजू चौडी तथा चौबीस हजार योजन मोटी पंकप्रभा विद्यमान है । पंकप्रभासे बीस हजार योजन कमती एक राजू नीचे उतर कर लग गयी सात राज् लम्बी चार सही तीन बटे सात राजू चौडी और बीस हजार योजन मोटी धूमप्रभा है । धूमप्रभासे सोलह हजार कमती एक राजू नीचे उतरकर प्राप्त होगयी सात राजू लम्बी पांच सही दो बटे सात राजू चौडी और सोलह हजार योजन मोटी तमःप्रभा भूमि जम रही है । तमःप्रभासे आठ हजार योजन कम एक राजू नीचे उतरकर छु ली गयी सात राज् लम्बी छह सही एक बटे सात राजू पूर्व पश्चिम चौंडी और ऊर्ध्व अधः आठ हजार योजन मोटी महातमःप्रभा है। सातों भूमियोंमेंसे प्रत्येकके नीचे और लोकके तलमें साठ साठ हजार योजन मोटा वातवलय है। ऊपर ऊर्ध्वलोकमें सात राजू लम्बी एक राजू पूर्व पश्चिम चौडी आठ योजम मोटी ईषत्याग्मारा नामक आठवीं भूमिके नीचे भी साठ हजार योजन मोटा वातवलय है । श्री त्रिलोकसारमें "जोयण वीससहस्सं बहलं वलयत्तयाण पत्तेयं भूलोयतले पासे हेट्ठादो जाव रज्जुत्ति" इस गाथा अनुसार उक्त अभिप्रायका निरूपण किया है। लोक या आठ भूमियों के नीचे वीस हजार योजन मोटा धनवात,