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________________ ૨૭૪ वार्थ लोकवार्त शरीरको अन्य शरीरोंसे भिन्न साधनेमें चार हेतु सर्वांग सुन्दर मनोहर बतलायें हैं । शरीरों का प्रतिपादन करनेवाले चौदह सूत्रों का विवरण कर जीवों की लिंगव्यवस्थाको अनुमानों द्वारा सुदृढ कर दिया है । परिशेष में जाकर हास होने योग्य और नहीं हास होने योग्य आयुष्यवाले जीवोंका बहुत बढ़िया प्रतिपादन कर मुमुक्षु श्रोताओं की परितृप्त कर दिया है । अन्य वादियों के ऊपर मीठा कटाक्ष करते हुये आयुके अपवर्त और अनपर्वतको साध कर मालिनी छन्दः द्वारा द्वितीय अध्यायके विवरणको जयहार ( जीतकी माला ) पहना दिया है । जीवमणद्धा मुर्निभिर्द्वितीयाऽध्याये स्वतत्त्वेन्द्रियगोचरेनाः । गत्युद्भवौ योनॅिशरीरलिङ्गाऽहा सायुषश्चोत्कलिता यथार्षे ॥ १ ॥ - इस प्रकार श्री. विद्यानन्द स्वामीकृत महाशास्त्र श्री तत्त्वार्थश्लोकवार्त्तिककी आगरा मंडलान्तर्गत चावलीग्रामनिवासी न्यायाचार्य, तर्करत्न, न्यायदिवाकर, सिद्धान्तमहोदधि, स्याद्वादवारिधिपदवीविभूषित माणिकचंन्द्र कृत तत्त्वार्थचिन्तामणि नामक हिन्दी भाषाटी का द्वितीय अध्याय परिपूर्ण हुआ । -X**x
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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