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तत्त्वार्थचिन्तामणिः ।
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___नापवर्त्यानपवळूयोरायुषोरन्यतरस्यापि प्रतिक्षेपं कुर्वन् प्रमाणेन न बाध्यते, अनुमानेनागमेन च तस्य बाधनात् स्वेष्टभेदप्रसिध्या चायं प्रबाध्यते । स्वयमिष्टं हि केषांचित्पाणिनामल्पायुः केषांचिदीर्घ तत्र शक्यं वक्तुं । विवादापन्नाः पाणिनोल्पायुषः शरीरित्वात् प्रसिद्धाल्पायुष्कवत् ते वा दीर्घायुषस्तत एव प्रसिद्धदीर्घायुष्कवदिति स्वेष्टविभागसिद्धिः प्रबाधिका ।
विपक्षको अन्वयदृष्टांत बनाकर व्यभिचारी हेतुओं द्वारा अपवर्तनीय और अनपवर्तनीय दो आयुओं से किसी भी एक आयुके निराकरणार्थ आक्षेप कर रहा स्थूलबुद्धि पंडित प्रमाण करके बाधित नहीं होता है, यह नहीं समझ बैठना । क्योंकि अनुमानप्रमाण और आगमप्रमाणसे उस आक्षेप कर्ताके मन्तव्यकी बाधा होजाती है। जब कि प्राणिदया आदि कारण विशेषोंसे उपार्जित किये गये तिस प्रकारके अदृष्टकी सम्प्राप्ति होजानेसे देव आदि जीवोंकी आयुको अनुमान द्वारा अनपवर्तनीय साधा जा चुका है तथा उसके विपरीत माने गये विशेष अदृष्टके वश हुये कर्मभूमियां जीवोंकी आयुका विष आदि द्वारा हास हो सकना सिद्ध कर दिया गया है, ऐसी दशामें आक्षेपकारके अनुमानाभास उक्त निरवद्य दो अनुमानोंसे बाधित हो जाते हैं एवं सिद्धान्तप्रन्थोंमें आयुका परिपूर्ण भोग और कदाचित् मध्यविच्छेद होना भी समझाया गया है । अन्तकृद्दशांगमें दारुण उपसर्ग संह कर कर्मका क्षय करनेवाले जीवोंकी वर्णना है । अनुत्तरौपपादिकदशांगमें भी उपसर्गवाले मुनियोंका वर्णन है। तथा सिद्धान्तग्रन्थ अनुसार गोम्मटसारमें आयुःकर्मके संक्रमण विना नौ करण स्वीकार किये हैं। " संकमणा करण्णा णव करणा होंति सव्व आऊणं " । वैद्यक ग्रन्थोंमें भी आयुःका पूर्ण भोग होना अथवा किसी जीवकी आयुः का मध्यमें हास हो जाना भी परिपुष्ट किया है। अतः आक्षेपकारके मन्तव्यको आगमप्रमाणसे भी बाधा (करारी ठेस) प्राप्त हुई । तथा यह सर्वत्र पोल चलानेवाला आक्षेपकार अपने अभीष्ट किये गये भेदोंकी प्रसिद्धि करके भी चोखा बाधित कर दिया जाता है। देखिये । इस आक्षेपकारने स्वयं किन्हीं किन्हीं चींटी, मक्खी, गिडोरे, घास, पतंग, प्राणियोंकी अल्प आयु अभीष्ट की है और किन्हीं किन्हीं वृक्ष, हाथी, बलिष्ठ मनुष्य, सर्प, आदि जीवोंकी लम्बी आयुः मानी है । उस दशामें हम भी इसके ऊपर कटाक्ष करते हुये यों कह सकते हैं कि जिन जीवोंकी लम्बी आयु तुमने मानी है वे विवादग्रस्त हो रहे वृक्ष आदि प्राणि भी (पक्ष ) अल्प कालवाली आयुको धारते हैं ( साध्य ), शरीरधारी होनेसे ( वही तुम्हारे घरका हेतु ) अल्प आयुवाले प्रसिद्ध घास जीव या रातको दीपकके चारों ओर घूमनेवाले पतंग आदिके समान ( अन्वयदृष्टान्त ) अथवा दूसरा अनुमान यों भी बनाया जा सकता है कि अल्प आयुवाले अभीष्ट किये गये वे खटमल मेंढकी, गिडार, राजयक्ष्मा रोगवाले प्राणी ( पक्ष ) दीर्घ आयुवाले हैं ( साध्य ) तिस ही कारणसे अर्थात्तुम्हारा अभ्यस्त लालित, पालित, वही शरीरधारीपन हेतु उनमें घटित हो रहा है ( हेतु ), प्रसिद्ध हो रहे दीर्घ आयुवाले वटवृक्ष, हाथी, मल्ल पुरुष, आदि जीवों के समान ( अन्वयदृष्टान्त ) । यहां प्रशंसाकी बात तो यही है कि हमने तुम्हारे अभीष्ट हो रहे हेतुसे ही तुम्हारे अभिमतसिद्धान्तका निरा