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तत्वार्यलोकजातिक वर्तमानमें किसी जीवके अन्तरंगकारण स्त्रीवेदका उदय होना या बहिरंगमें मृदुभाषण करना, पुरुषके साथ रमण करनेकी अभिलाषा रखना, अधिक श्रृंगार करना, स्वादिष्ट रस युक्त भोजन करना, आदिक कारण स्त्रीवेदके हेतु हैं । और अन्तरंगमें पुम्वेदका उदय होना और बहिरंगमें लोकमें उत्कृष्ट गुणोंका स्वामित्व प्राप्त करना, स्वादिष्ट गरिष्ठ रसयुक्त भोजन करना, रसायन सेवन, वीररसवर्द्धिनी क्रियायें करना, आदि कारण जीवके पुम्वेद हो जानेमें हेतु हैं, तथा नपुंसक वेदके कारण तो नपुंसक वेदका उदय, तीव्र कषाय, योनिमेहनादि उपांगोंका अभाव या क्लीबत्वकारक पदार्थोंका सेवन आदिक हैं । तिस ही कारणसे ( नौमें गुणस्थानतक ) संसारी प्राणियोंके स्त्रीलिंग आदि तीनों वेदोंकी सिद्धि हो जाती है । इस प्रकार भिन्न भिन्न रूपसे सम्पूर्ण प्राणियोंके लिंगको श्री उमास्वामी महाराजने केवल तीन सूत्रों करके ही कह दिया है। यह समझ लेना चाहिये ।
के पुनरत्र शरीरिणोऽनपवायुषः के वापवायुष इत्याह ।
उक्त देहधारी जीवोंमें फिर कौन जीव यहां अपवर्तन नहीं करने योग्य आयुष्यवाले हैं ! और किन जीवोंकी आयुका बाह्य कारणोंसे ह्रास हो जाता है ? बताओ । अर्थात्-चारों गतियों के जीव क्या अपनी सम्पूर्ण आयुको भोग कर मरते हैं ? अथवा क्या पूर्णआयुका भोग नहीं करके भी मरकर अन्य गतियों को प्राप्त हो जाते हैं ? बताओ। ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज शिष्योंकी व्युत्पत्ति बढानेके लिये अग्रिम सूत्रको कह रहे हैं। औपपादिकचरमोत्तमदेहासंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुषः ।
उपपाद जन्मको धारनेवाले देव और नारकी जीव तथा चरम उत्तम शरीरको धारनेवाले तीर्थकर महाराज एवं असंख्यात वर्षातक जीवित रखनेवाली आयुको धारनेवाले भोगभूमियां, या कुभोगभूमियां, तिर्यंच या मनुष्य इन जीवोंकी आयुका मध्यमें हास नहीं हो पाता है । परिपूर्ण आयुको भोगकर ही ये उत्तरगतिको प्राप्त करते हैं ।
औपपादिका देवनारकाः चरमोत्यस्तजन्मनिर्वाणार्हस्य देहः उत्तम उत्कृष्टः चरमश्चासौ उत्तमश्च चरमोत्तमश्चरमविशेषणमुत्तमस्याचरमस्य निवृत्यर्थ उत्तमग्रहणं चरमस्यानुत्तमत्वव्युदासार्थ । चरमोत्तमो देहो येषां ते चरमोत्तमदेहाः । उपमाप्रमाणगम्यमसंख्येयवर्षायुर्येषां ते द्वंद्ववृत्त्या निर्दिष्टाः संसारिणोऽनपवायुषो भवंति इति वचनसामर्थ्यात्ततोन्ये अपवायुषो गम्यते ।
औपपादिक शब्दका अर्थ देव और नारकी जीव है । चरम शब्दका अर्थ सब शरीरोंके अंतमें होनेवाला मोक्षगामी जीवका पिछला शरीर है, जोकि उसी जन्ममें मोक्ष प्राप्त करने की सामर्थ्य रखनेवाले जीबकी देह है । उत्तमका अर्थ उत्कृष्ट है । चरम होरही संता जो वह उत्तम देह है, वह 'चरमोत्तम