________________
२४४
तत्त्वार्यश्लोकवार्तिके
कारण कि औदारिकशरीर ही तो वैक्रियिक नहीं है। किन्तु उससे न्यारे देव नारकियोंके औपपादिक शरीरको वैक्रियिकपना है और वह वैक्रियिक शरीर अपने कारणोंकी विभिन्नता द्वारा औदारिकसे भिन्न कहा जाता है।
किमेतदेव वैक्रियिकमुतान्यदपीत्याह । ... क्या यह उपपादजन्मवाला शरीर ही वैक्रियिक शरीर है ! अथवा क्या अन्य भी कोई शरीर वैक्रियिक है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज समाधानकारक अग्रिम सूत्रको कह रहे हैं।
लब्धिप्रत्ययं च ॥४७॥ लब्धिको कारण मानकर उपजा हुआ विक्रियात्मक औदारिक शरीर भी वैक्रियिक शरीर माना गया है। ___तपोतिशयर्दिर्लब्धिः सा प्रत्ययः कारणमस्येति लब्धिप्रत्ययं वैक्रियिकमित्यनुवर्तते च शब्दस्तूक्त समुच्चयार्थस्तेन लब्धिप्रत्यमौपपादिकं च वैक्रियिकमिति संप्रत्ययः।
अतिशययुक्त तपस्या करनेसे विशेषऋद्धिकी प्राप्ति हो जाना यहां प्रकरणमें लब्धि कही गयी है। जिस शरीरका कारण वह लब्धि है, वह लब्धिप्रत्यय वैक्रियिक शरीर है। जैसे कि श्री विष्णुकुमार महाराजने स्वकीयऋद्धि स्वरूप पुरुषार्थ द्वारा लम्बा चौडा वैक्रियिक शरीर बनाया था। पूर्व सूत्रसे " वैक्रियिकं " इस पदकी अनुवृत्ति कर ली जाती है, और इस सूत्रमें पड़ा हुआ च शब्द तो पूर्वमें कहे जा चुके वैक्रियिककी विधिका समुच्चय करनेके लिये है । तिन वैक्रियिक पदकी अनुवृत्ति
और समुच्चय वाचक च शब्द करके सूत्रका अर्थ यों भले प्रकार जान लिया जाता है कि लब्धिको कारण मानकर हुआ शरीर वैक्रियिक है, तथा उपपाद जन्मसे उपजनेवाले देव नारकियोंका शरीर तो वैक्रियिक है, यह पूर्व सूत्रमें कहा ही जा चुका है ।
नन्विदमौदारिकादेः कथं भिन्नमित्याह । ___ यहां किसीका प्रश्न उठता है कि औदारिकशरीरधारी तपस्वियोंके ऋद्धिविशेषसे उत्पन्न हुआ शरीर तो औदारिक ही होना चाहिये । जब कि उन मुनियोंके वैक्रियिक काययोग नहीं है, तो उनका वह शरीर वैक्रियिक नहीं हो सकता है । अतः. बताओ कि यह लब्धिसे उपजा शरीर भला औदारिक आदिसे भिन्न किस ढंगसे माना गया है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द स्वामी समाधान करनेके लिये अग्रिम वार्तिकको कहते हैं ।
किंचिदौदारिकत्वेपि लब्धिप्रत्ययता गतेः। ततः पृथक् कथंचित्स्यादेतत्कर्मसमुद्भवं ॥ १॥