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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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उन वैक्रियिक, आहारक, दो शरीरोंसे भिन्न हो करके गर्भहेतु, और संमूर्च्छनहेतुसे उपज रहा होने से ( हेतु ) अर्थात् - उपभोगसहित तीन शरीरोंमें गिनाया जा रहा, औदारिक शरीर अपने हेतु माने गये गर्भ, संमूर्च्छन जन्मका भेद होजानेसे शेष दो शरीरोंकी अपेक्षा निराला ही है ।
यथैव कार्मणं निरुपभोगत्वात्सोपभागेभ्यो भिन्नं तथौदारिकं सोपभोगमपि कारणभेदात् पराभ्यां भिन्नमभिधीयते ।
जिस ही प्रकार कार्मणशरीर उपभोगरहित होनेसे उपभोगसहित शेष शरीरोंसे भिन्न है, उसी प्रकार उपभोगसहित भी औदारिकशरीर अपने कारणोंका भेद हो जानेसे परले दो शरीरोंसे भिन्न हो रहा कहा जाता 1
वैक्रियिकं कीदृशमित्याह ।
औदारिक शरीरसे परली ओर कहा गया वैक्रियिक शरीर भला कैसा क्या है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज भविष्य सूत्रका अवतार करते हुये कह रहे हैं । .
औपपादिकं वैक्रियिकम् ॥ ४६ ॥
उपपाद जन्म से होनेवाला देव, नारकियोंका औपपादिक शरीर तो वैक्रियिक शरीर है 1 उपपादो व्याख्यातः तत्र भवमौपपादिकं तद्वैाक्रायिकं बोद्धव्यं । कुतः पुनरौदारिकादिदं भिन्नमित्याह
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" संमूर्च्छनगर्भोपपादा जन्म इस सूत्र के विवरणमें उपपादका व्याख्यान किया जा चुका है । देव और नारकियोंके उपजनेका स्थानविशेष उपपाद कहा जाता है । उस उपपादमें उपज रहा शरीर औपपादिक है, वह सब वैक्रियिक शरीर समझ लेना चाहिये । कोई पूछता है कि किस कारणसे यह वैक्रियिक शरीर फिर औदारिकसे भिन्न है ? बताओ । ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य अग्रिम वार्त्तिकको कहते हैं ।
औपपादिकतासिद्धेर्भिन्नमौदारिकादिदं ।
तावद्वैक्रियिकं देवनारकाणामुदीरितम् ॥ १ ॥
उपपाद जन्मसे उपजनेकी सिद्धि हो जानेसे यह देव नारकियोंका वैक्रियिक शरीर तो सूत्र - द्वारा उस औदारिकसे भिन्न कहा जा चुका है 1
न ह्यौदारिकमेव वैक्रियिकं ततोन्यस्योपपादिकस्य देवनारकाणां शरीरस्य वैक्रियिकत्वात् । तच्च कारणभेदादौदारिकाद्भिन्नमुच्यते ।