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तत्वार्थचिन्तामणिः
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विक्रिया करनेवाले मुनियोंका औदारिकशरीर ही अनेक प्रकारकी रचनाओंको प्राप्त हो गया है । अतः विक्रियायुक्त शरीरमें कुछ कुछ औदारिकपना होते हुये भी लब्धिको उसके कारणपनेका निर्णय हो जानेसे यह लब्धिजन्य उत्पन्न हुआ शरीर उस औदारिकसे कथंचित् भिन्न समझा जायगा । तथा इस वैक्रियिक शरीरनामक नामकर्मका उदय हो जानेपर उत्पन्न हुये देव नारक शरीरोंसे भी यह कथंचित् भिन्न है। मनुष्य या तिर्यंचोंके तो विक्रिया करते समय भी औदारिक शरीरसंज्ञक नामकर्मका ही उदय है। मनुष्यगतिमें १०२ एक सौ दो प्रकृति तथा तिर्यंच गतिमें १०७ एक सौ सात प्रकृतियां उदय होने योग्य हैं। इनमें वैक्रियिकशरीर नहीं गिनाया गया है। अतः विक्रियायुक्त मनुष्योंका औदारिक शरीर होते हुये भी अणु, महत् , आदि विविधकरणस्वरूप विक्रियाके प्रयोजनवाला होनेसे लब्धिप्रत्यय शरीरको वैक्रियिक कह दिया गया है । सिद्धान्तशास्त्रमें तेजस्कायिक, वायुकायिक जीव और किन्हीं किन्हीं पंचेंद्रिय तिर्यंच मनुष्योंके कदाचित् वैक्रियिक शरीरका भी सद्भाव कहा है।
यथौदारिकनामकर्मसमुद्भवमौदारिकं तथा वैक्रियिकनामकर्मसमुद्भवं वैक्रियिकं युक्तं तथा तदलब्धिप्रत्ययं वैक्रियिकं । न हि लब्धिरेवास्य कारणं वैक्रियिकनामकर्मोदयस्यापि कारणत्वादन्यथा सर्वस्य वैक्रियिकस्य तदकारणत्वप्रसंगात् । तेनेदमौदारिकत्वेपि कथंचिदौदारिकाद्भिनं लब्धिप्रत्ययत्वनिश्चयात् । किंचिदेव हि लब्धिप्रत्ययं वैक्रियिकमिष्टं न सर्वम् ।
- जिस प्रकार औदारिक शरीर संज्ञक नामकर्मके उदयसे अच्छा उत्पन्न हुआ शरीर औदारिक कहा जाता है, तिस ही प्रकार नामकर्मकी शरीरनामक प्रकृतिके उत्तर भेद हो रहे वैक्रियिकसरीर नामक नामकर्मसे बहुत अच्छे उत्पन्न हुये शरीरको वैक्रियिक शरीर कहना उचित है । किन्तु तिस प्रकार वैक्रियिकशरीर नामक नामकर्मके उदयसे उत्पन्न हुआ वह देव नारकियोंका वैक्रियिक शरीर तो लब्धिको कारण मानकर नहीं उपजा है और तपस्वियोंके वैक्रियिक शरीरमें कारण तो लब्धि है। इस वैक्रियिक शरीरका कारण केवल लब्धि ही नहीं है । किन्तु देव, नारकियोंके, शरीरमें वैक्रियिक नामकर्मका उदय भी कारण है अन्यथा यानी औपपादिकोंके भी शरीरका अन्तरङ्ग कारण यदि वैक्रियिक नामकर्मका उदय नहीं माना जायगा तब तो उस वैक्रियिक नामकर्मके उदयको सम्पूर्ण वैक्रियिक शरीरोंके कारण नहीं हो सकनेका प्रसंग होगा । तिस कारण औदारिक शरीरपना होते हुये भी यह तपस्वियोंका विक्रियात्मक शरीर सार्वदिक औदारिकसे कथंचित् भिन्न है। क्योंकि उस विक्रियात्मक शरीरके विषयमें लब्धिको कारण हो जानेका ज्ञानी जीवोंको निश्चय हो रहा है । कोई ही वैक्रियिक शरीर लब्धिनामक कारणसे जन्य माना गया है। सभी वैक्रियिक शरीर तो लब्धिप्रत्यय नहीं हैं । देव नारकियोंका वैक्रियिक शरीर न्यारा है तथा औदारिक शरीरधारी चक्रवर्ती आदिकोंका विक्रियात्मक शरीर भी इस लब्धिप्रत्यय वैकियिक शरीरसे निराला है, व्याख्याप्रज्ञप्तिदंडक नामक सिद्धांत शास्त्रोंके प्रकरणोंमें मनुष्योंके वैक्रियिकशरीरका कदाचित् होना इष्ट किया है।