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________________ तत्त्वार्थचिन्तामणिः जिन करके आकाश आदिकोंका क्षेत्रविभाग संकेतित किया जाय अथवा जो स्वयं घट आदिकोंमें अवयवपने करके निर्दिष्ट किये जायं वे परमाणु यहां प्रदेश कहे जाते हैं, परले परले उत्तरोत्तर शरीर उन प्रदेशोंकी अपेक्षा असंख्यात गुणे हैं। इस प्रकार वाक्यका दोनों ओरसे सम्बन्ध कर लेना चाहिये । सूत्रकार श्री उमास्वामी महाराजने " तैजस शररिके पाहिले” यों कण्ठोक्त निरूपण किया है । इस कारण तैजस और कार्मण शरीरमें असंख्यात गुणपन नहीं है तो फिर सूत्रकारका अभिप्राय क्या है ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर यों निश्चय करलेना चाहिये कि औदारिकसे वैक्रियिक शरीर प्रदेशोंकी अपेक्षा असंख्यात गुणा है, और उस वैक्रियिकसे भी आहारक शरीर प्रदेशोंकी अपेक्षा असंख्यात गुणा अधिक है। तैजसकार्मणे किंगुणे इत्याह । आदिके तीन शरीरोंमें वर्तनेवाले दो असंख्यात गुणोंका निरूपण किया, अब यह बताओ कि अन्तके तैजस और कार्मणशरीर भला प्रदेशोंकी अपेक्षा किस गुणाकारको धार रहे हैं ! ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिमसूत्रको स्पष्ट रूपसे कहते हैं। अनंतगुणे परे ॥ ३९॥ प्रदेशोंकी अपेक्षा आहारकशरीरसे तैजस शरीरमें परमाणु अनन्तगुणे हैं और तैजस शरीर जितने परमाणुओंसे बना हुआ है उनसे अनन्तगुणे परमाणुओं करके कार्मणशरीर सम्पन्न हुआ है यहां अनन्तका अर्थ अभव्य जीवोंसे अनन्तगुणा और सिद्ध जीवोंके अनन्तमें भागस्वरूप कोई मध्यवर्ती जिनदृष्ट अनन्त ( संख्या ) लिया गया है । अतः पिछले दो तैजस और कार्मण शरीर परमाणुओं के सद्भावकी अपेक्षा अनन्त गुणे हैं। ___ प्रदेशतः इत्यनुवर्तते परं परमिति च, तेनाहारकात्परं तैजसं प्रदेशतोऽनंतगुणं ततोपि कार्मणमनंतगुणमिति विज्ञायते । तत एव नोभयोस्तुल्यत्वमाहारकादनंतगुणत्वाभावात् । अन्यदेष हि आहारकादनंतगुणत्वं तैजसस्य, तैजसाच्चान्यत् कार्मणस्य तस्यानंतविकल्पत्वात् । ___पूर्वके “ प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् " सूत्रसे प्रदेशतः इस पदकी अनुवृत्ति कर ली जाती है। और “ परं परं सूक्ष्म ” सूत्रसे " परं परं" इस पदकी अनुवृत्ति हो जाती है । तिस कारण सूत्रवाक्यका अर्थ विशेषरूपसे यों जान लिया जाता है कि आहारक शरीरसे परला तैजस शरीर प्रदेशोंकी अपेक्षा अनंतगुणा है और उन तैजस शरीरसे भी परला कार्मणशरीर उसके आद्यजनक परमाणुओंकी गणना करनेपर अनन्त गुणा है । तिस ही कारणसे दोनोंकी तुल्यता नहीं हुयी । क्योंकि आहारकसे अनन्तगुणपना दोनोंमें एकसा नहीं है । अर्थात्-परला परला कह देनेसे तैजस और कार्मण दोनों शरीरोंमें परमाणुओंकी संख्या तुल्य नहीं ठहरती है । आहारकसे अनन्तगुणा
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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