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________________ २१८ तत्त्वार्थ लोकवार्तिके सूत्रमें पढे गये अनुसार औदारिकसे परले, परले, वैक्रियिक आदिक शरीर गढन्तकी अपेक्षा सूक्ष्म सूक्ष्म हैं। औदारिकसे सूक्ष्म वैक्रियिक है और वैक्रियिकसे आहारक सूक्ष्म है । आहारकसे तैजस और तैजससे कार्मण अतिशय सूक्ष्म हैं 1 परशब्दस्यानेकार्थत्वे विवक्षातो व्यवस्थार्थगतिः पृथग्भूतानां सूक्ष्मगुणेन वीप्सानिर्देशः तेनौदारिकात्परं वैक्रियिकं सूक्ष्मं न स्थूलतरं, ततोप्याहारकं, ततोपि तैजसं सूक्ष्मं ततोपि कार्मणमिति संप्रतीयते । पर शके व्यवस्था, भिन्न, प्रधान, इष्ट, शत्रु, ऐसे कई अर्थ हैं । किन्तु अनेक अर्थ होनेपर भी यहां विवक्षासे व्यवस्था अर्थ जाना जाता है। संज्ञा, लक्षण, प्रयोजन, संख्या, आदि करके पृथक् पृथक् हो चुके भी शरीरोंका सूक्ष्म गुणके साथ वीप्सा करके कथन किया गया है। उस वीप्सा निर्देशसे यों भले प्रकार प्रतीति कर ली जाती है कि औदारिकसे परले ओरका वैक्रियिक शरीर सूक्ष्म है, किन्तु मोटे औदारिकसे वैक्रियिक शरीर और भी अधिक मोटा नहीं है, उस वैक्रियिकसे भी आहारक शरीर सूक्ष्म ढंगसे रचा गया है, उस आहारकसे भी तैजसशरीर सूक्ष्म है तथा उस तैजससे भी कार्मण शरीर सूक्ष्म है । रुई, तेल, वायु, अग्निज्वाला, विद्युत्प्रभा, बिजलीका करन्ट, की पौगलिक रचनाओं में जिस प्रकार सूक्ष्मपना प्रसिद्ध है, उसी प्रकार शरीरोंमें लगा लेना चाहिये । प्रदेशतः परं परं कीदृगित्याह । पुनः किसीका प्रश्न है कि पांचों शरीर उत्तरोत्तर जब सूक्ष्म हैं, तब तो परले परले शरीर विचारे प्रदेशोंसे भी न्यून होवेंगे । यदि प्रदेशोंसे न्यून नहीं है तो बताओ प्रदेशों की अपेक्षा परले परले शरीर किस ढंगके रचे हुये हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं । कर्णकुहरको पवित्र करते हुये उसको सुनियेगा । प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं प्राक्तैजसात् ॥ ३८ ॥ अवगाहकी अपेक्षा नहीं किन्तु परमाणुस्वरूप प्रदेशों करके उत्तरोत्तरशरीर यें तैजस शरीरसे पहिले पहिले असंख्यात गुण हैं । अर्थात् - पल्यका असंख्यातवां भागरूप असंख्यात यहां असंख्यात शद्बसे पकडा गया है । औदारिक शरीरमें जितने परमाणु हैं. उनसे असंख्यात गुणे परमाणु वैकियिक शरीर में हैं, और वैक्रियिक शरीरमेंके परमाणुओंसे आहारक शररिके परमाणु असंख्यात गुणे अधिक हैं । प्रदेशाः परमाणवस्ततोऽसंख्येयगुणं परंपरमित्यभिसंबंधः । प्राक्तैजसादिति वचनात् न तैजसकार्मणयोरसंख्येयगुणत्वं । किं तर्हि ? औदारिकाद्वैक्रियिकं प्रदेशतोऽसंख्येयगुणं ततोयाहारकमिति निश्चयः ॥
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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