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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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किया जाता तंब तो उन देवनारक और शेष जीवोंमें गर्भका अभाव निर्णीत किया जा सकता है। इस . कारण जरायुज आदिक जीवोंके ही गर्भ होता है, यह अवधारण कर कथन करना युक्तिपूर्ण है।
केवलमुपपादेपि जरायुजादीनां प्रसक्तौ तन्निवारणार्थमिदमाह ।
अथवा " जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः" इस सूत्रमें पूर्व अवधारण कर जरायुज, अण्डज, पोत, जीवोंके ही गर्भ होता है, यों अर्थ करलिया जाय, तब तो केवल जरायुज आदिकोंके ही गर्भ हुआ, देव नारकियोंके गर्भके प्रसंगका निवारण होगया, किन्तु जरायुज आदि जीवोंके दूसरे उपपादमें भी जन्म लेनेका प्रसंग आता है। क्योंकि विधेय दलमें अवधारण तो है नहीं। अतः उस प्रसंगका निवारण करनेके लिये श्री उमास्वामी महाराज इस अग्रिम सूत्रको कहते हैं।
देवनारकाणामुपपादः ॥३४॥ देव और नारकी जीवोंके उपपाद नामका जन्म होता है । स्याद्देवनारकाणामुपपादो नियतस्तथा । तस्याभावात्ततोन्येषां तेषां जन्मांतरच्युतेः ॥१॥
देव और नारक जीवोंके तिस प्रकार उपपाद जन्म ही नियत हो जायगा। क्योंकि उन देव नारकियोंसे भिन्न हो रहे दूसरे जीवोंके उस उपपाद जन्मका अभाव है। तिस कारण उन देव नारकियोंके उपपादसे अतिरिक्त अन्य गर्भ, सन्मूर्छन जन्मोंकी निवृत्ति सिद्ध हो जाती है।
देवनारकाणामेवोपपाद इति हि नियमे देवनारकेषु नियत उपपादः देवनारकास्सूपपादे न नियता इति गर्भसंमूर्छनयोरपि प्रसक्ताः पूर्वोत्तरसूत्रावधारणात् तत्र निरवधारणोसौ । उपपाद एष देवनारका अवतिष्ठते न गर्भे संमूर्छने वा प्रसज्यंते, ततस्तेषां जन्मांतरच्युतिसिद्धेरुपपाद एव ।
चूंकि देव और नारकियोके ही उपपाद जन्म होता है, ऐसा नियम कर देनेपर देव और नारकियोंमें ही उपपाद जन्म नियत हो जाता है। ऐसा होनेपर जरायुज आदिक और शेष जीवोंके उपपाद जन्मकी व्यावृत्ति हो जाती है । किन्तु देव और नारक जीव तो उपपाद जन्ममें नियत नहीं हुये । इस कारण गर्भ और सम्मूर्छम जन्मोंमें भी देव और नारकियोंके उपज जानेका प्रसंग आ जाता है । हां, वहां पूर्वसूत्र " जरायुजाण्डजपोतानां गर्भः ” और उत्तर सूत्र " शेषाणां संमूर्छनं " इनमें उद्देश्यदलमें अवधारणं लगा देनेसे वह उपपाद जन्म अवधारणरहित होता हुआ ही प्रसंगको टाल देता है। आगे पीछेके सूत्रोंमें अवधारण लगा देनेसे देव और नारकी उपपाद जन्ममें ही उपस्थित रहते हैं।
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