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तत्त्वार्यश्लोकवातिक
___ आत्मनः परिणामविशेषश्चित्तं, शीतः स्पर्शविशेषः, संवृसो दुरुपलक्ष्यः । सह चित्तेन वर्तत इति सचित्तः, शीतोस्यास्तीति शीतः, संवियते संवृतः । सचित्तश्च शीतश्वं संवृतश्च सचित्तशीतसंवृताः सहेतरैरचित्तोष्णविवृतैर्वर्तते इंति सेतराः समतिपक्षाः, मिश्रग्रहणमुभयात्मसंग्रहार्थ ।
आत्माके चैतन्यान्वित विशेषपरिणामको चित्त कहते हैं। आठ प्रकारके स्पर्शमें शीत एक स्पर्शविशेष है, जो कि प्रसिद्ध ही है। संवृतका अर्थ भले प्रकार आच्छादित हो रहा यह जो प्रदेश बडी कठिनतासे देखा जा सके या नहीं देखा जा सके वह संवृत है । चिंत्तके साथ जो वर्तता है, इस कारण वह सचित्त कहा जाता है, शीतस्पर्श नामक गुण जिसके विद्यमान है, इस कारण यह योनिस्थान शीत है, गुणवाचक शीत शब्दसे मत्वर्थीय अच् प्रत्यय कर लेना । जो भले प्रकार ढक दिया जाय वह संवृत है। सचित्त और शीत तथा संवृत इस प्रकार इतरेतर योग द्वन्द्व समास करने पर " सचित्तशीतसंवृताः " पद बन जाता है । ये सचित्त, शीत, संवृत, यदि इतर हो रहे, अचित्त, उष्ण, विवृतोंके साथ वर्त जाते हैं, इस कारण सेंतर यानी प्रतिपक्षसहित हो जाते हैं। इस सूत्रम मिश्रका ग्रहण करना तो सचित्त, अचित्तका उभय और शीत उष्ण दो अवयंववाला उभयं तथा संवृत, विवृत इन दोनों आत्मक उभयका संग्रह करनेके लिये हैं।
. च शद्धः प्रत्येकं समुच्चयार्थ इत्येके, तदयुक्तं, तमंतरेणापि तत्पतीतेः, पृथिव्यमेजोवायुरिति यथा। इतरयोनिभेदसमुच्चयार्थस्तु युक्तश्चशद्धः, एकशो ग्रहणं क्रममिश्रप्रतिपयर्थ तेन सचित्तोचित्तो मिश्रश्च शीतउष्णो मिश्रश्च संवृतो विवृतो मिश्रश्चेति नवयोनिभेदास्तस्य जन्मनः प्रतीयंते तच्छदस्य प्रकृतापेक्षत्वात् ।
. कोई एक विद्वान् यों कह रहे हैं कि सूत्रमें पडा हुआ च शब्द तो प्रत्येकको समुच्चय कारनेकै लिये है । अर्थात्-प्रत्येकके साथ च शब्द लगा देनेपर ही नौ भेद हो सकते हैं | अन्यया योनी च शब्द नहीं डाला जायगा तो सचित्त, शीत, संवृत, जब सेतर होकार मिल जाय, तब योनियां हो जाती हैं, यह अर्थ निकल पडेगा । और च शब्द कर देनेसे प्रत्येक प्रत्येक योनि हो जाती हैं । ग्रन्थकार कहते हैं कि उनका कहना युक्तिरहित हैं । क्योंकि उस च शब्दके विना भी प्रत्येकका समुच्चय हो सकता है । जैसे कि " पृथिव्वप्तेजोवायुरिति तत्त्वानि ” यहां च शब्दके विना ही
और बढुवचनान्त प्रयोगके विना ही पृथिवी, जल, तेज, वायु, थे प्रत्येक प्रत्येक होकर चार तत्व है, यह अर्थ निकल आता है । हां, संक्षेप प्रतिपादक सूत्रमें योनियोंके जो अन्य भेद नहीं कहे गये हैं, उनका समुच्चय करनेके लिये तो च' शब्दका प्रयोग करना समुचित है । इस सूत्रमें एक एक इस प्रकार वीप्सामें शस् प्रत्यय कर एकशः शब्दका ग्रहण करना तो क्रमपूर्वक मिश्र योनियकी प्रतिपत्तिके लिये है । तिस " एकशः " शब्द करके सचित्त और अचित्त रूप मिश्र तथा शीत और उष्ण