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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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शरीरमें उन गुणोंसे की गई क्रियाका प्रत्यक्ष ज्ञान होनेसे ( हेतु ) जहां जिसके द्वारा की गयी क्रियाका उपलम्भ हो रहा है, वहां क्रियाके हेतुभूत गुणका सम्बन्ध है । या क्रिया हेतुभूतगुणके समवायी द्रव्यका सम्बन्ध विद्यमान है ( अन्वयदृष्टान्त ) जैसे कि वृक्षस्वरूप वनस्पतिमें वायु द्वारा की गई क्रियाका उपलम्भ होनेसे वायुमें क्रियाहेतुगुण वेग या कंपानेवाला ईरण ( धक्का देना) विद्यमान है ( अन्वयदृष्टान्त ) तिसी प्रकार कायमें आत्मा द्वारा की गयी क्रियाका उपलम्भ हो रहा है ( उपनय) तिस कारणसे शरीरी आत्मामें क्रियाके हेतुभूत गुणोंका सम्बन्ध है (निगमन)। यों अनुमानसे निश्चयकर लिया जाता है। यहां कोई प्रश्न करता है कि फिर यह बताओ ? कि आत्मामें क्रियाका हेतु हो रहा वह गुण कौनसा है ? आचार्य उत्तर कहते हैं कि प्रयत्न, वीर्य, उत्साह, बल, आदिक गुण आत्मामें क्रियाके सम्पादक हैं । चूंकि प्रयत्नवाले आत्मा करके कायमें बुद्धिपूर्वक क्रिया की जाती है जिससे कि खाना, पीना, चलना, घूमना, उडना, भित्ती ( कुश्ती ), भिरना, शास्त्र लिखना, खेलना, सीमना, कसीदा काढना, आदि क्रियायें हो जाती हैं । हां, शरीरमें हुई अबुद्धिपूर्वक क्रियायें तो पुण्य पापवाले आत्मा करके अव्यक्त पुरुषार्थ द्वारा बनाली जाती हैं, जिससे नख, केश, आदिकी वृद्धि होना, रक्त संचार, अन्न परिपाक, मल उपमलोंका बनना, आदि क्रियाओंका सम्पादन हो जाता है । अन्यथा यानी प्रयत्नवान् आत्माके विना शरीरमे उन बुद्धिपूर्वक या अबुद्धिपूर्वक हुई क्रियाओंकी निष्पत्ति होनेका अयोग है । अतः क्रियाके सम्पादक गुणोंका सम्बन्ध हो रहा होनेसे आत्मामें गति क्रिया सिद्ध हो जाती है।
ननु च क्रियाहेतुगुणयुक्तः कश्चिदन्यत्र क्रियामारभमाणः क्रियावान् दृष्टो यथा वेगेन युक्तो वायुर्वनस्पती, कश्चित्पुनरक्रियो यथाकाशं पतत्रिणि तथात्मा क्रियाहेतुगुणयुक्तश्च स्यादक्रियश्चेति नायं हेतुः क्रियावत्वं साधयेदाकाशेन व्यभिचारात् इति कश्चित्, सोत्रैवं पर्यनुयोक्तव्यः । केन क्रियाहेतुना गुणेन युक्तमाकाशमिति ? वायुसंयोगेनेति चेन्न, तस्य क्रियाहेतुत्वा. सिद्धः । वनस्पतौ वायुसंयोगात् क्रियाहेतुरसाविति चेन्न, तस्मिन् सत्यप्यभावात् । विशिष्टो वायुसंयोगः क्रियाहेतुरिति चेत्, कः पुनरसौ ? नोदनमभिघातश्चेति । किं पुनर्नोदनं कश्चाभिघातः ? वेगवद्र्व्यसंयोग इति चेत्, तर्हि वेग एव क्रियाहेतुस्तभावे भावात् तदभावे चाभावात् न त्वाकाशस्य वेगोस्तीति न क्रियाहेतुगुणयुक्तमाकाशं ततो न तेन साधनस्य व्यभिचारः।
___ यहां कोई वैशेषिक मतका अनुयायी अपने आत्माके क्रियारहितपन मन्तव्यका और भी अवधारण कर रहा है कि कोई कोई पदार्थ तो क्रियाके हेतुभूत गुणसे युक्त हो रहा अन्य पदार्थों में क्रियाका आरम्भ कर रहा सन्ता वह क्रियावान् देखा गया है, जैसे कि क्रियाके कारण वेग गुणसे सहित हो रहा वायु दूसरे वनस्पस्तियोंमें हलन, कम्पन, क्रियाओंको उपजाता है। किन्तु कोई कोई पदार्थ तो फिर क्रियारहित होता हुआ ही दूसरे पदार्थोंमें क्रियाका आरम्भ कर देता है। जैसे कि आकाश द्रव्य