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तत्वार्थचिन्तामणिः
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द्विविधानि " ये दो सूत्र हैं । पांच इन्द्रियां हैं वे द्रव्य और भाव भेदसे प्रत्येक दो प्रकारवाली हैं इस 1 प्रकार यहां दो प्रकारके मनकी भी बिना कहे ही सामर्थ्यसे सिद्धि हो जाती है । " तदिन्द्रियानिन्द्रियनिमित्तम् ” इस सूत्र में इन्द्रियोंके साथ अनिन्द्रिय भी प्रधानरूपसे कहा गया है तथा पांचमें अध्यायके " शरीरवाङ्मनः प्राणापानाः पुद्गलानाम् इस सूत्र सूत्रकार श्री उमास्वामी महाराजने पुद्गल निर्मित द्रव्यमनका स्वयं कण्ठोक्त निरूपण किया है 1
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तस्मादिंद्रियमनसी विज्ञानस्य कारणं नार्थोपीत्यंकलंकैरपि द्विविधेंद्रियसामान्यवाक्यत्वेन द्विविधस्य मनसोभीष्टत्वात् । द्रव्यमनः प्रतिषेधिवचनाभावाच्च तत्प्रतिषेधे प्रमाणाभावाद्युक्त्यागमविरोधाच्च । तत्राहोपुरुषिकामात्रं केषांचिदविभावितसिद्धांतत्वमाविर्भावयति ।
तिस ही कारणसे सम्माननीय श्री अकलंक महाराजने भी यों कहकर कि इन्द्रिय और मन दोनों ही विज्ञानके कारण हैं, किंतु विषय हो रहा अर्थ भी विज्ञानका कारण नहीं है । इस कथन द्वारा दोनों प्रकारकी इन्द्रियोंके प्रतिपादक सामान्य वाक्य होनेसे द्रव्यमन और भावमन दोनों प्रकारके मनको अभीष्ट किया है । तथा द्रव्यमनका प्रतिषेध करनेवाले वचनका अभाव है, उस द्रव्यमनका निषेध करनेमें कोई प्रमाण' नहीं है । युक्ति और आगमसे भी विरोध आता है। फिर भी वहां द्रव्यमनका निषेध करनेमें आश्चर्य दिखलाते हुये नग्न, निर्लज, पुरुषकीसी केवल चेष्टायें करना तो किन्ही चार्वाक सदृशवादियोंके सिद्धांतविषयक विचाररहितपनको प्रकट करा रहा है । अर्थात् — द्रव्यमनका निषेध करनेवाले चार्वाक विचारे सिद्धान्तरहस्यका परामर्श नहीं कर सकते हैं। यहांतक ग्रन्थकारने भावमनके साथ द्रव्यमनको भी सिद्ध कर दिया है। मैं ही पुरुष हूं यों अभिमानजन्य अपनेमें उत्कर्ष सम्भावना ( बहादुर ) तो आहोपुरुषिका है ।
कश्चिदाह-द्रव्यमन एव भावमनोस्ति तच्चात्मपुद्गलव्यतिरिक्तं द्रव्यांतरमिति तदप्यपसारयति ।
कोई वैशेषिक या नैयायिक यों कह रहा है कि द्रव्यमन ही भावमन है और वह द्रव्यमन तो आत्मा और पुद्गल दोनों द्रव्योंसे अतिरिक्त हो रहा न्यारा नौवां द्रव्य है । " पृथिव्यापस्ते जोवायुराकाशं कालो दिगात्मा मन इति द्रव्याणि " यों कणादमुनिप्रणीत सूत्र है । इस प्रकार उस वैशेषिकसिद्धान्तका भी निराकरण श्री विद्यानन्द स्वामी अग्रिमवार्तिक द्वारा करते हैं ।
आत्मपुद्गलपर्यायव्यतिरिक्तं मनो न तु ।
द्रव्यमस्ति परैरुक्तं प्रमाणाभावतस्तथा ॥ ५ ॥
अन्तरंग निर्वृत्ति और लब्धि, उपयोग, रूप मन तो आत्मद्रव्यस्वरूप है तथा बहिरंगनिवृत्ति और अष्टदल कमलरूप, उपकरण स्वरूप मन तो पुद्गलकी पर्याय है । आत्मा पर्याय और पुद