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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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स्पर्शादयस्तदर्थाः स्युर्द्रव्यपर्यायकात्मकाः । द्रव्यैकांते क्रियापायात्सर्वथा कूर्मरोमवत् ॥ १ ॥ तथैव पर्ययैकांते भेदैकांतेऽनयोरपि ।
अनेकांतात्मना तेषां निर्बाधमुपलब्धितः ॥२॥ .
उन इन्द्रियोंके विषय हो रहे स्पर्श आदिक अर्थ तो द्रव्य आत्मक और पर्यायआत्मक नियुक्त हैं वे स्पर्श आदिक न केवल द्रव्यस्वरूप हैं और केवल पर्यायस्वरूप भी वे नहीं हैं। यदि उनको सर्वथा द्रव्य होनेका एकांत माना जायगा तो कूर्मरोम ( कछवेके बाल ) के समान असत् हो रहे नित्य कूटस्थ द्रव्यमें क्रिया उपजना इष्ट हो जायगा । " नित्यत्वैकांतपक्षेपि विक्रिया नोपपद्यते " ( श्रीसमंतभद्रः ) तिस ही प्रकार स्पर्शादिकोंको एकांत रूपसे यदि पर्याय ही माना जायगा तो भी द्रव्यके विना कच्छपरोमके समान असत् हो रहे पर्यायीका विवर्त नहीं हो सकेगा तथा इन द्रव्य और पर्याय दोनोंको एकांत रूपसे भेद माननेपर ही दोनोंका असत्त्व हो जाता है। अग्निके विना अकेली उष्णता नहीं ठहरती हुयी असत् हो जाती है और उष्णता पर्यायके विना स्कंधद्रव्य अग्नि भी असत् हो जाता है । अतः अनेक धर्मआत्मकपने करके उन स्पर्श आदिकोंकी बाधाओंसे रहित उपलब्धि होजानेसे स्पर्श आदिक द्रव्य पर्याय उभयात्मक हैं । ततो अनेकात्मन एव स्पर्शादयः स्पर्शनादीनां विषयभावमनुभवंति नान्यथा प्रतीत्यभावात् ।
तिस कारणसे सिद्ध हुआ कि एकत्व, पृथक्त्व, या भेद, अभेद, अथवा द्रव्यपन, पर्यायपन, आदिक अनेक धोके साथ तदात्मक एकरस हो रहे स्पर्श आदिक ज्ञेय ही स्पर्शन आदि इन्द्रियोंके विषय हो जानेका अनुभव करते हैं । अन्यथा यानी दूसरे प्रकारसे एक ही धर्म आत्मक हो रहे स्पर्श आदिक उन स्पर्शन आदि इन्द्रियों के विषय नहीं हैं। क्योंकि पदार्थोंको द्रव्यस्वरूप ही या पर्यायस्वरूप ही इस प्रकार एक ही धर्म आत्मक सिद्ध करनेवाली प्रतीतियोंका अभाव है ।
अथानिंद्रियस्य को विषय इत्याह ।
बहिरंग पांच इन्द्रियोंका विषय कहा जा चुका है। अब अनिन्द्रिय छटे मनका विषय क्या है ? इस प्रकार जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज समाधानकारक अग्रिम सूत्रको कहते हैं ।
श्रुतमनिंद्रियस्य ॥ २१ ॥ चक्षु आदि इन्द्रियोंके समान नियत देश, विषय, अवस्थान, नहीं होनेसे इन्द्रिय भिन्न ईषत् इन्द्रिय हो रहे मनका ज्ञेय विषय तो श्रुतज्ञानगम्य पदार्थ है । अर्थात् मतिज्ञानसे पदार्थको जानकर पुनः