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________________ तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके आदि विषयोंको जाननेके लिये उत्सुक हो रहे मनके सन्निहित होनेपर भी तथा लब्धिस्वरूप भावेंन्द्रियके होते हुये भी कभी कभी स्पर्श आदिके ज्ञान नहीं उपज पाते हैं । वह ज्ञानकी अनुत्पत्ति अन्यथा यानी निवृत्तिस्वरूप इन्द्रियोंको माने विना नहीं बन पाती है । अतः निर्वृत्ति स्वरूप इन्द्रियोंकी ध्युति होनेपर ही उन स्पर्श आदिके ज्ञानोंकी च्युति हो जाना सिद्ध है। इस प्रकार अविनाभावी हेतुसे निर्वृत्ति इन्द्रियां सिद्ध कर दी गयी हैं । पांचों इन्द्रियोंमें और मनमें भी दोनों प्रकारके निवृत्ति और उपकरणोंको समझ लेना चाहिये । कानि पुनर्भावन्द्रियाणीत्याह । दो प्रकारकी इन्द्रियोंमें पिछली भावेन्द्रियां फिर कौन हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री उमास्वामी महाराज अग्रिम सूत्रको कहते हैं। लब्ध्युपयोगी भावेन्द्रियम् ॥ १८॥ लब्धि और उपयोग स्वरूप भावेंद्रियां हैं । भावार्थ-पांचों इन्द्रियां और छठे मनके भावेंद्रिय रूपसे प्रत्येकके लब्धि और उपयोग ये दो दो भेद हो रहे हैं । इन्द्रियनिर्वृत्तिहेतुः क्षयोपशमविशेषो लब्धिः तनिमित्तः परिणामविशेष उपयोगः लब्धिथोपयोगश्च लब्ध्युपयोगी भावेंद्रियमिति जात्यपेक्षयैकवचनं । द्रव्य इन्द्रियोंकी निवृत्ति ( बनाने ) का निमित्त कारण हो रहा क्षयोपशम विशेष तो लब्धि है। अर्थात्-ज्ञानावरण कौके क्षयोपशमसे हुयी विशुद्धि द्वारा आत्मा द्रव्येंद्रियों का सम्पादन करता है। जिस आत्माके पास स्पर्शन इन्द्रियावरण कर्मका क्षयोपशम होगा उस आत्माके केवल एक ही स्पर्शन द्रव्य इन्द्रिय बनेगी । मनुष्य जीवके विग्रहगतिमें छऊ इन्द्रियोंका क्षयोपशम हो रहा है। अतः गर्भावस्थामें जन्म लेते ही छऊ द्रव्येंद्रियोंका बनना प्रारम्भ हो जाता है तथा उस लब्धिको निमित्त मानकर हुआ आत्माका परिणामविशेष तो उपयोग है । लब्धि और उपयोग यों द्वन्द्व समास करनेपर " लब्ध्युपयोगौ " यह पद बन जाता है । ये दोनों भाव इन्द्रिय हैं, ऐसा वाक्यार्थ कर लिया जाता है। छह इन्द्रियोंके दो दो भेद होकर बारह भावेंद्रियां हैं। फिर भी जातिकी अपेक्षा करके "भावेंद्रियम्" ऐसा वचन सूत्रमें कह दिया है । एकेंद्रियसे लेकर संज्ञी पञ्चेंद्रियपर्यंत अनेक लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके भी द्रव्येंद्रियोंका बनना प्रारम्भ हो जाता है । पूर्णता नहीं हो पाती है । तदनुसार उनके लब्धिरूप इन्द्रियां मानी जाती है। कुतः पुनस्तानि परीक्षका जानत इत्याह । ____परीक्षक विद्वान् फिर उन भावेंद्रियोंको किस प्रमाणसे जानते हैं ? ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानंद स्वामी उत्तर कहते हैं ।
SR No.090499
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 5
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1964
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size22 MB
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