________________
तत्त्वार्थचिन्तामणिः
पर निवृत्ति और उपकरण ये दो द्रव्येन्द्रिय हैं। यों जातिकी अपेक्षा द्रव्येन्द्रिय शब्दमें एक वचन कह दिया गया है । अन्यथा निवृत्ति और उपकरण इस द्विवचनान्त उद्देश्य दलका सामानाधिकरण होनेसे द्विवचन " द्रव्येन्द्रिये" कहना चाहिये या । अथवा पांचों इन्द्रियोंको द्रव्येन्द्रियकी विधि करनेकी अपेक्षा द्रव्येन्द्रियाणि यह बहुवचनपद प्रयोग उपयोगी पडता । किन्तु जाति शब्द मानकर एक वचन कह देनेसे सभी प्रयोजन सिद्ध होजाते हैं । गेंहू मन्दा है, चना तेज है, यहां जातिमें एक वचनका प्रयोग है । वैसा ही सूत्रमें जान लेना ।
कुतः पुनस्तानि प्रतिपद्यंत इत्याह । वे निर्वृत्ति और उपकरणस्वरूप इन्द्रियां फिर किस प्रमाणसे जानली जाती हैं ? बताइये, ऐसी जिज्ञासा होनेपर श्री विद्यानन्द आचार्य उत्तर कहते हैं।
द्विविधान्येव निवृत्तिस्वभावान्यनुमिन्वते । सिद्धोपकरणात्मानि तच्च्युतौ तद्विदश्च्युतेः ॥१॥
बाह्य, अभ्यन्तर, निर्वृत्ति स्वरूप और प्रत्यक्ष प्रमाणोंसे सिद्ध हो रहे बहिरंग अन्तरंग उपकरण स्वरूप दो प्रकारकी ही इन्द्रियोंको विद्वान् अनुमान द्वारा जान रहे हैं, यहां व्यतिरेक घट जाता है। यदि उन इन्द्रियोंकी च्युति कर दी जायगी तो उन निर्वृत्ति और उपकरणसे उत्पन्न हुई संवित्तिओंकी भी च्युति हो जायगी।
बाह्याभ्यंतरोपकरणेंद्रियाणि तावत्पसिद्धान्येव तव्यापारान्वयव्यतिरेकानुविधायिनां स्पर्शादिज्ञानानामुपलभात् । बाह्याभ्यंतरनिर्वृत्तिस्वभावानि चेंद्रियाणि तत एवानुमीयंते व्यापारवत्स्यप्युपकरणेंद्रियेषु विषयालोकमनस्सु च संनिहितेषु सत्यपि च भावेंद्रिये कदाचित्स्पर्शादिज्ञानानुत्पत्तेरन्यथानुपपत्तेस्तच्च्युतावेव तद्विदश्च्युतिसिद्धेः।
सबसे प्रथम बाह्य उपकरण और अभ्यन्तर उपकरण स्वरूप इन्द्रियां तो बालक बालिकाओं, पशु पक्षियों, तकको प्रसिद्ध हो ही रहीं हैं । क्योंकि उन बहिरंग, अन्तरंग, उपकरणोंके व्यापारके साथ अन्वय, व्यतिरेकका अनुविधान करनेवाले स्पर्श, रस, आदि ज्ञानोंकी उपलब्धि हो रही है। कारणके होनेपर कार्यका होना अन्वय है और नियत किये जानेवाले कारणके विना कार्यका न होन व्यतिरेक है । स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शबके ज्ञानोंका उपकरण इन्द्रियोंके साथ अन्वयव्यतिरेक बन रहा है । आत्माको अर्थकी उपलब्धि करनेमें जो निमित्तकारण पडेगा वह इन्द्रिय है। यह लक्षण पहिले बांधा जा चुका है। तथा तिस ही हेतुसे यानी स्पर्श, आदिके ज्ञानोंकी अन्यथानुपपत्ति होनेसे ही बाधनिर्वृत्ति और अभ्यन्तरनिर्वृत्ति स्वरूप इन्द्रियोंका भी अनुमान कर लिया जाता है। देखिये, व्यापारको धार रहीं भी उपकरण इन्द्रियों के होनेपर और स्पर्श, स्पर्शवान् , रस, रसवान्