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________________ तत्वार्थश्लोकवार्तिके आदि पर्यायें पुद्गलद्रव्यके अधीन हैं। ज्ञान, सुख, बन्ध, मोक्ष, पण्डिताई आदिक परिणाम जीव द्रव्यके अधीन हैं । वस्तुतः अनेक पर्यायोंसे गुम्फित द्रव्य हो रहा है। पर्याय और द्रव्योंका तदारमक पिण्ड वस्तुभूत है । ५८ न सन्ति सर्व पर्यायानि द्रव्याणि सर्व पर्यायनिर्मुक्तत्वाच्छशश्रृंगवत् । न सन्त्येकान्तपर्यायाः सर्वथा द्रव्यमुक्तत्वाच्छ्शश्रृंगोच्चत्वादिवत् । ततो न तद्विषयत्वं मतिश्रुतयोः शङ्कनीयं प्रतीतिविरोधात् । सम्पूर्ण पर्यायोंसे छूटे हुये जीव आदिक द्रव्य ( पक्ष ) नहीं हैं ( साध्य ) ( प्रतिज्ञा ) सम्पूर्ण पर्यायोंसे सर्वथा रहितपना होनेसे ( हेतु ) जैसे कि शशका सींग कोई वस्तु नहीं है (दृष्टान्त) इस अनुमान द्वारा पर्यायोंसे रहित हो रहे केवल द्रव्यका प्रत्याख्यान कर दिया गया है । तथा Ratra केवल पर्यायें ही ( पक्ष ) नहीं हैं ( साध्य ) । सभी प्रकार द्रव्योंसे छोड दिया जाना होनेसे ( हेतु ) शशाके सींगकी उच्चता आदिकी पर्यायें जैसे नहीं है ( दृष्टान्त ) । इस अनुमान द्वारा बौद्धोंकी मानी हुयीं द्रव्यरहित अकेली पर्यायोंका खण्डन कर दिया गया है । तिस कारण से मतिज्ञान और श्रुतज्ञानमें उन केवल द्रव्यों या केवल पर्यायका विषय करलेनापन शंका करने योग्य नहीं है । क्योंकि प्रमाणप्रसिद्ध प्रतीतिओंसे विरोध आता है । नाशेषपर्ययाक्रान्ततनूनि च चकासति । द्रव्याणि प्रकृतज्ञाने तथा योग्यत्वहानितः ॥ २० ॥ - मतिज्ञान और श्रुतज्ञानद्वारा द्रव्य और पर्यायोंका विषय हो जाना जब सिद्ध हो चुका तो द्रव्यकी सम्पूर्ण पर्यायोंको दोनों ज्ञान क्यों नहीं जान लेते हैं? ऐसा प्रश्न होनेपर आचार्य कहते हैं कि जिन द्रव्योंका शरीर सम्पूर्ण पर्यायोंकरके चारों ओरसे घिरा हुआ है, उन सम्पूर्ण पर्यायबाली द्रव्यें तो प्रकरणप्राप्त ज्ञानमें नहीं प्रकाशित होती हैं । अर्थात् मतिज्ञान श्रुतज्ञान सम्पूर्ण पर्यायों सहित द्रव्योंका नहीं प्रतिभास कराते हैं। क्योंकि तिस प्रकारके योग्यतारूप क्षयोपशम या क्षयकी हानि हो रही है । आवरणोंके विगम अनुसार ज्ञान अपने ज्ञेयोंका प्रतिभास करा सकते हैं। यों ही अंट: संट चाहे जिसको नहीं प्रकाश देते हैं । ननु च यदि द्रव्याण्यनंतपर्यायाणि वस्तुत्वं विभ्रति तदा मतिश्रुताभ्यां तद्विषयाभ्यां भवितव्यमन्यथा तयोरवस्तुविषयत्वापत्तेरिति न चोद्यं, तथा योग्यतापायात् । न हि वस्तुसत्तामात्रेण ज्ञानविषयत्वमुपयाति । सर्वस्य सर्वदा सर्व पुरुषज्ञानविषयत्वप्रसंगात् । कारिकाका विवरण यों हैं यहां कोई शंका करता है कि अनन्त पर्यायवाले द्रव्य यदि वस्तु'पनको धार रहे हैं, तब तो मतिज्ञान श्रुतज्ञानों करके उन संपूर्ण अनन्तपर्यायोंको विषय कर लेना
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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