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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः प्रसंग ः प्रत्यवस्थानं साधर्म्येणेतरेण वा । वैधम्यक्तेऽन्यथोक्ते च साधने स्याद्यथाक्रमम् ॥ ३१०॥ ४५७ न्यायभाष्य में यों लिखा है कि " स च प्रसंग: साधर्म्यवैधम्र्म्याभ्यां प्रत्यवस्थानमुपालम्भः प्रतिषेध इति उदाहरणसाधर्म्यात साध्यसाधनं हेतुरित्यस्योदाहरणसाधम्र्म्येण प्रत्यवस्थानं । उदाहरण वैधर्म्यात् साध्यसाधनं हेतुरित्यस्योदाहरणं वैधर्म्येण प्रत्यवस्थानम् । प्रत्यनीकभाव ज्जायमानोऽर्यो जातिरिति " तदनुसार प्रसंगका अर्थ यह है किं उदाहरण के वैधर्म्यसे साध्यको साधनेवाले हेतुका कथन करचुकने पर पुनः प्रतिवादीद्वारा साधर्म्यकर के प्रतिषेध देना यानी दूषण उठाना प्रसंग है । अथवा अन्य प्रकार यामी उदाहरणका साधर्म्य दिखाकर हेतुका कथन करचुकनेपर पुनः प्रतिवादीद्वारा वैधर्म्यकरके प्रत्यववस्थान ( उछाहना ) देना प्रसंग है, यथाक्रमसे ये दो ढंग प्रसंगके हैं । उदाहरणवैधर्म्येणोक्ते साधने साधर्म्येण प्रत्यवस्थानमुदाहरणसाधर्म्येणोक्ते वैधर्म्येण प्रत्यवस्थानमुपाळंभः प्रतिषेधः प्रसंग इति विज्ञेयं “ साधर्म्यवैधर्म्याभ्यां प्रत्यवस्थानं जातिः " इति वचनात् । इसका तात्पर्य यो समझ लेना चाहिये किं वादीद्वारा व्यतिरेकदृष्टान्तरूप उदाहरणके विधर्मापनकरके ज्ञापकहेतुका कथन करचुकनेपर प्रतिवादीद्वारा साधर्म्यकर के प्रतिषेध किया जाना प्रसंग है और वादीद्वारा अम्बयदृष्टान्तस्वरूप उदाहरणके समानधर्मापनकर के ज्ञापकहेतुका कथन किये जाने पर पुनः प्रतिवादीद्वारा विधमपिमकर के प्रत्यवस्थान वानी उलाहना देना, अर्थात - वादी के कहे गयेका प्रतिषेध कर देना भी प्रसंग है । गौतम सूत्रमें जातिका मूल लक्षण साधर्म्य और बैधर्म्य करके उलाहमा उठाना जाति है, यों कहा गया है। एतदेवाह इस ही सूत्र और भाष्यका अनुवाद करते हुये श्री विद्यानन्द आचार्य उक्त कथनको ही वार्त्तिकों द्वारा उनकी परिभाषा में कहते हैं । उदाहरणसाधर्म्यात्साध्यस्यार्थस्य साधनं । हेतुस्तस्मिन् प्रयुक्तेन्यो यदा प्रत्यवतिष्ठते ॥ ३११ ॥ उदाहरण वैधर्म्याच व्याप्तिमखंडयत् । . तदासौ जातिवादी स्याद्दूषणाभासवाक्ततः ॥ ३१२ ॥ साध्य अर्थका साधन करनेवाला हेतु ही है । उदाहरण के सधर्मापनसे उस हेतुका प्रयोग किये जानेपर जिस समय अन्य प्रतिवादी उस अनुमान के हेतुमें व्याप्तिका खण्डन नहीं कराता 58
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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