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तवार्थचिन्तामणिः
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हेत्वामासोंकी सात प्रकार भी मळे प्रकार संख्या बखानी है । अनेकान्तिकके दो भेदोंको बढाकर या मसिद्ध के दो भेदोंको अधिक कर सात संख्या पूरी की जा सकती है।
हेत्वाभासत्रयं तेपि समर्थ नातिवर्तितुं ।
अन्यथानुपपन्नत्ववैकल्यं तच नैककम् ॥ २७४ ॥ यथैकलक्षणो हेतुः समर्थः साध्यसाधने । तथा तद्विकलाशक्तो हेत्वाभासोनुमन्यताम् ॥ २७५ ॥ यो ह्यसिद्धतया साध्यं व्यभिचारितयापि वा। विरुद्धत्वेन वा हेतुः साधयेन स तनिभः ॥२७६ ॥
वे पांच प्रकार या सात प्रकार हेत्वाभासोंको माननेवाले नैयायिक भी बौद्धों द्वारा माने गये तीन हवामानोंका उल्लंघन करनेके लिये समर्थ नहीं हैं। और वह तीन हेत्वाभासोंका कथन भी अन्यथानुपपत्तिसे रहितपन इसी एक हेत्वाभासका उल्लंघन करने के लिये समर्थ नहीं है। भावार्थ-नयायिक या वैशेषिकोंके यहां पांच या सात प्रकारके हेत्वाभास माने गये हैं। वे बौद्धोंके यहां माने गये मसिद्ध, विरुद्ध, बनेकान्तिक इन हेत्वाभासोंमें ही गर्मित हो सकते हैं । बौद्धोंने हेतुका पक्षवृचित्व गुण असिद्ध दोषके निवारण अर्थ कहा है । और हेतुका सपक्षमें रहनापन गुण तो विरुद्ध हेत्वाभासके निराकरण अर्थ प्रयुक्त किया है। तथा हेतुका विपक्षव्यावृत्ति नामका गुण तो न्यमिचार दोषको हटाने के लिये बोला है । अतः इन तीनों हेत्वाभासोंमें ही पांचों सातोंका गर्भ हो सकता है । तथा बौद्धोंके ये तीन हेत्वाभास भी एक अविनाभावविकलता नामक हेत्वाभासमें ही गर्मित हो सकते हैं । सम्पूर्ण दोषोंके निवारण अर्थ रसायन औषधिके समान हेतुका एक अविनामाव गुण ही पर्याप्त है। जितने ही सुधारक होते हैं, उतनी ही विघ्न कारणोंकी संख्या है । इस नियम अनुसार हेतुके दोषोंकी संख्या भी केवल एक अन्यथानुपपत्तिकी विकलता ही है। अतः जैन सिद्धान्त अनुसार हेवामासका एक ही भेद अन्यथानुपपत्तिरहितपन मानना चाहिये । जिस प्रकार कि एक अविनामाव ही लक्षणसे युक्त हो रहा हेतु साध्यको साधनेमें समर्थ है, उसी प्रकार अकेले अविनामावसे विकल हो गया हेतु तो साध्यको साधनेमें अशक्त है । अतः वह एक ही हेत्वाभास स्वीकार करना चाहिये। एक ही हेत्वाभास अनुमिति या उसके कारण व्याप्तिज्ञान, परामर्श भादिका विरोध करता हुआ साध्यसिद्धिमें प्रतिबन्धक हो जाता है । जो भी हेतु पक्षमें नहीं रहनारूप मसिद्धपने दोष करके साध्यको नहीं साधेगा वह अविनाभावविकल होनेसे हेत्वाभास समझा जायगा अथवा जो हेतु विपक्षवृत्तिरूप व्यभिचारीपन दोष करके साध्यको नहीं साध सकेगा वह भी
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