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तत्वार्थ छोकवार्तिके
चौअन सप्तमंगियां बना लीजियेगा । तथा नोऊ नैगमोंसे पहिले अस्तित्व भंगको साध कर और सम मिरूढसे दूसरे नास्तित्व भंगकी कल्पना कर एक एक सप्तभंगी बनाते हुये नैगमकी समभिरूढ के साथ नौ सप्तमंगियां बना लेना । ऐसे ही नौ नैगमोंमेंसे एक एक नैगमकी अपेक्षासे विधि कल्पना कर और एवंभूत नयसे निषेध कल्पना करते हुये नौ नैगमके भेदोंकी एवंभूत के साथ नौ सप्तमंगियां बन गयीं समझ लेनी चाहिये । इस प्रकार नैगमकी १८+१८ +९+५४+९+९=११७ यों एक सौ सत्रह उत्तर सप्तभंगियां हुयीं ।
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तथा संग्रहादिनयभेदानां शेषनयभेदैः सप्तभंग्यो योज्याः । एवमुत्तरनय सप्तभंग्यः पंचसप्तत्युत्तरशतं ।
संग्रहों की एक प्रकार साथ दो दो मूल
एक समभिरूढके साथ
तिसी नैगमके प्रकारों अनुसार संग्रह आदिक नयोंके भेदोंकी उत्तर उत्तर शेष बचे हुये tihari साथ अस्तित्व, नास्तित्वकी विवक्षा कर सप्तभंगियां बना लेनी चाहिये अर्थात्- दोनों संप्रहनयोंकी अपेक्षा अस्तित्वको मान कर और दोनों व्यवहारनयोंसे नास्तित्वको मान कर दो दो मूलमंगों द्वारा एक एक सप्तभंगी बनाते हुये संग्रहके पर, अपर, भेदोंकी व्यवहार के पर, अपर, दो भेदों के साथ चार सप्तमंगियां हुथीं। दो संग्रहों की अपेक्षा अस्तित्वको मानते हुये और ऋजुसूत्र से गढ कर दो मूलमंगों द्वारा सप्तभंगीको बनाते हुये पर, अपर, ऋजुसूत्र के साथ दो सप्तभंगिया हुयीं । तथा दो संग्रहोंकी छह प्रकारके शद्वनयके भंग करके सप्तभंगी बना कर बारह सप्तभंगियां हुयीं । तथा दो संग्रहों की विधि प्रतिषेध कल्पना करते हुये दो सप्तमंगियां बनाना । इसी प्रकार दो संग्रहों की अपेक्षा विधि करते हुये और एवंभूतकी अपेक्षा निषेध करते हुये दो सप्तमंगियां हुयीं । इस प्रकार संप्रहृनयके भेदों की शेषनयोंके भेदोंके साथ ४+२+१२+२+२= २२ बाईस सप्तभंगियां हुयीं । तथा व्यवहारनयके दो भेदोंकी अपेक्षा अस्तित्व मान कर और ऋजुसूत्र के एक भेदकी अपेक्षा नास्तित्व मान कर दो मूळ मंगोंले एक एक सप्तभंगी बनाते हुये दो सप्तमंगियां हुयीं । और दो व्यवहारनयोंकी छह प्रकारके शङ्खनयों के साथ अस्तित्व, नास्तित्वकी कल्पना करते हुये बारह सप्तभंगियां बना लेना और दो प्रकार व्यवहारनयकी अपेक्षा अस्तित्वकी कल्पना कर समभिरूढ के साथ नास्तित्वको मानते हुये दो सप्तमंगियां बना लेना और दो व्यवहारनयोंकी अपेक्षा विधान करते हुये एवंभूतकी अपेक्षा नास्तित्वको कल्पित कर दो सप्तमंगियां बना लेना, इस प्रकार व्यवहारनयके दो भेदों की शेषनय या नयभेदोंके साथ २+१२+२+२ = १८ अठारह सप्तमंगियां हुयीं । तथा ऋजुसूत्रकी सप्तमंगियां यों हैं कि एक ऋजूसूत्रकी छह प्रकारके शब्दनयके साथ अस्तिाव, नास्तित्वको विवक्षित कर छह सप्तभंगियां हुयीं, यद्यपि ऋजुसूत्रकी अपेक्षा अस्तित्व कल्पित कर और समभिरूढकी अपेक्षा नास्तित्वकी कल्पना कर एक सप्तभंगी तथा ऋजुसूत्रकी अपेक्षा अस्तित्व और एवभूतकी अपेक्षा नास्तित्व मान कर दो मूल भंगोंद्वारा दूसरी सप्तभंगी इस प्रकार दो सप्तभंगिय