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तत्त्वार्यचिन्तामणिः
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प्रकार व्यवहारनयकी अपेक्षा अस्तित्व मान कर शब्द, समभिरूढ और एवंभूतसे नास्तित्वको कल्पते हुये तीन सप्तभंगियां और भी बना लेना । ये व्यवहारनयकी ऋजुसूत्र आदिके साथ बन कर चार सप्तमंगिगां हुयी तथा ऋजुसूत्रकी अपेक्षा विधिकी कल्पना अनुसार शब्द आदिक तीन नयोंके साथ निषेधकी कल्पना कर दो दो मूल भंगोंको बनाते हुये ऋजुसूत्रनयकी शब्द आदि तीनके साथ तीन सप्तभंगियां हुयीं । तथा शब्द्वनयकी अपेक्षा विधि कल्पना कर और सममिरूढके साथ निषेध कल्पना करते हुये दो मूलमंगोंसे एक सप्तभंगी बनाना । इसी प्रकार शद्बद्वारा विधि और एवंभूत द्वारा निषेधकी कल्पना कर दो मूलभंगोंसे दूसरी सप्तभंगी बना लेना । यों शब्दकी समभिरूढ आदि दो नयोंके साथ दो सप्तमंगियां हुयीं। तथा समभिरूढकी अपेक्षा अस्तित्वकी कल्पना कर और एवंभूतकी अपेक्षा नास्तित्वको मानते हुये दो मूलभंगोंसे एक सप्तभंगी बना लेना। इस प्रकार स्त्रकीय पक्ष हो रहे पूर्व पूर्व नयों की अपेक्षासे विधि और प्रतिकूल पक्ष माने गये, उत्तर उत्तर नयोंकी अपेक्षासे प्रतिषेधकी कल्पना करके सात मूळनयों की इक्कीस सप्तमंगियां हो गयीं, समझ लेनी चाहिये ।
तथा नवानां नैगमभेदानां दाभ्यां परापरसंग्रहाभ्यां सह वचनादष्टादश सप्तभंग्यः, परापरव्यवहाराभ्यां चाष्टादश, ऋजुसूत्रेण नव, शद्धभेदैः पद्धिः सह चतुरपंचाशत्, समभिरूढेन सह नव, एवंभूतेन च नत्र, इति सप्तदशोत्तरं शतं ।
नयोंकी मूल सप्तमंगियोंके भेद हो चुके, अब नयोंके उत्तर भेदों द्वारा रची गयीं सप्तभंगियोंको गिनाते हैं। उसी क्रम अनुसार अर्थपर्याय नैगम १ व्यंजनपर्याय नैगम २ अर्थव्यंजनपर्याय नैगम ३ शुद्धद्रव्य नैगम ४ अशुद्धद्रव्य नैगम ५ शुद्धद्रव्यार्थपर्याय नैगम ६ अशुद्धद्रव्याथपर्याय नैगम ७ शुद्धव्यव्यंजनपर्याय नैगम ८ अशुद्धद्रव्यव्यंजनपर्याय नैगम ९ इस प्रकार नैगमके नौ भेदोंका पर, अपर,इन दो प्रकारके संग्रह नयोंके साथ कथन करनेसे अठारह सप्तभंगियां हो जाती हैं। अर्थात्-अर्थपर्याय नैगमकी अपेक्षा अस्तित्व कल्पना कर परसंग्रहकी अपेक्षा नास्तित्व मानते हुए दो मूलभंगोंकी भित्तिपर एक सप्तभंगी बना लेना । इसी प्रकार नौऊ नेगमोंकी अपेक्षा अस्तित्व मानते हुए दोनों संग्रहोंसे प्रतिषेध करते हुए अठारह सप्तभंगियां बन गयीं । तथा नौ नैगमके भेदोंकी अपेक्षा अस्तित्व मानकर पर, अपर, इन दो व्यवहार नयोंकरके नास्तित्वको मानते हुये दो दो मूळमंगोंसे एक एक सप्तमंगी बनाते हुए ये भी अठारह सप्तभंगियां होगई। तथा ऋजुसूत्रका एक ही भेद है । अतः नौ नैगमोंसे विधिकी कल्पना कर और ऋजुसूत्रनयसे प्रतिषेध करते हुये दो दो मूभंगोंद्वारा ये नौ सप्तमंगियां हुयीं। शब्दनयके काल कारक लिंग संख्या साधन उपसर्ग ये छह भेद हैं। नैगमके नौऊ मेदोंसे अस्तित्वको मानते हुये और शब्दनयके छहऊ मेदोंसे नास्तित्वको कल्पते हुये दो दो मूल भंगोंसे एक एक सप्तभंगीको बनाकर नौ छक