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________________ तवायचिन्तामणिः संक्षेपतो नयविभागमामर्शयति । सामान्यरूपसे नयकी संख्या और लक्षणको कहकर अब श्री विद्यानन्द आचार्य नयके संक्षेपसे विभागों का अच्छा परामर्श कराते हैं। या " आदर्शयति " ऐसा पाठ रखिये । संक्षेपाविशेषेण द्रव्यपर्यायगोचरौ । द्रव्यार्थी व्यवहारांतः पर्यायार्थस्ततोऽपरः ॥ ३ ॥ २१५ संक्षेपसे नय दो प्रकार माने गये हैं। प्रमाणका विषय वस्तु तो अंशी ही है । तथा द्रव्य और पर्याय उसके अंश हैं । वस्तुके विशेष धर्म करके द्रव्य और पर्यायको विषय करनेवाले द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय हैं । और उससे निराला पर्यायार्थिक नय है, जो कि ऋजुसूत्र से प्रारम्भ कर एवं भूततक भेदोंसे तदात्मक हो रहा है । विशेषतः संक्षेपाद्वौ नयौ द्रव्यार्थः पर्यायार्थथ । द्रव्यविषयो द्रव्यार्थः पर्यायविषयः पर्यायार्थः प्रथमो नैगमसंग्रहव्यवहारविकल्पः । ततोपरचतुर्धा ऋजुसूत्रशब्दसमभिरूढैवंभूतविकल्पात् । सामान्यरूपसे विचार कर चुकनेपर अब विशेषरूपसे अपेक्षा होते सम्ते परामर्श चलाते हैं। कि संक्षेपसे नय दो है । एक द्रव्यार्थ है और दूसरा पर्यायार्थ है । वस्तुके नित्य अंश द्रव्यको विषय करनेवाला नय द्रव्यार्थ है और वस्तुके अनित्य अंश पर्यायोंको विषय करनेवाला नय पर्यायार्थका उदर अन्य भी शेयपदार्थोंको धार लेता है । पहिले द्रव्यार्थ नयके नैगम संग्रह और व्यवहार ये तीन विकल्प है । उससे भिन्न दूसरा पर्यायार्थ नय ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ, और एवंभूत इन भेदोंसे चार प्रकारका है । विस्तरेणेति सप्तैते विज्ञेया नैगमादयः । तथातिविस्तरेणैतद्भेदाः संख्यातविग्रहाः ॥ ४ ॥ और भी विस्तार करके विशेषरूपसे विचारनेपर तो ये नय नैगम आदिक एवंभूत पर्यन्त सात हैं । इस प्रकार समझ लेना चाहिये । तथा अत्यन्त विस्तार करके नयके विशेषोंकी जिज्ञासा होनेपर संख्याते शरीरवाले इन नयोंके मेद हो जाते हैं । अर्थात्-शब्द वस्तुके धर्मको कहते रहते. 1 हैं । अतः जितने शब्द हैं उतने नय हैं, अकार, ककार, आदि वर्णोद्वारा बनाये गये अभिधायक शब्द संख्यात प्रकारके ही हैं, शब्दोंके मेद असंख्यात और अनन्त नहीं हो सकते हैं। कितना भी घोर परिश्रम करो पचासों अक्षरोंका या पदोंका सम्मेलन कर बनाये गये शब्द भी संख्यात ही बनेंगे, जो कि मध्यम संख्यात है । जैन सिद्धान्त अनुसार १ काख योजन लम्बे चौडे गोक
SR No.090498
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 4
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1956
Total Pages598
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size17 MB
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