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तत्वार्थचिन्तामणिः
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त्रिविधोऽसावसिद्धादिभेदात्कैश्चिद्विनिश्चितः ।
खरूपाश्रयसंदिग्धाज्ञातासिद्धश्चतुर्विधः ॥२५॥
हां, किन्हीं जैन विद्वानोंकरके यह हेस्वाभास असिद्ध, विरुद्ध, और अनेकान्तिक इन भेदोंसे तीन प्रकारका विशेषरूपसे निषित किया गया है । तिनमें असिद्ध नामका हेत्वामास तो स्वरूपा. सिद्ध, बाश्रयासिद्ध, संदिग्धासिद्ध और अज्ञातासिद्ध इन भेदोंसे चार प्रकारका माना गया है। अस्तु ।
तत्र स्वरूपतोऽसिद्धो वादिनः शून्यसाधने । .. सवों हेतुर्यथा ब्रह्मतत्त्वोपप्लवसाधने ॥ २६ ॥
उन असिद्ध हेत्वामासके भेदोंमें वादीके यहां स्वरूपसे असिद्ध हो रहा हेवामास इस प्रकार है कि जैसे शून्यवादको साधनेमें सभी हेतु स्वरूपासिद्ध हो जाते हैं । अथवा अद्वैत ब्रमको साधने में दिया गया प्रतिभासमानस्व हेतु अपने स्वरूपसे असिद्ध है । साध्य के साथ अविनामाव रखते हुये हेतुका पक्षमें ठहरना स्वरूप है । जो कि अभावरूपत्व, अविचार्यमाणस्व, प्रतिमासमानत्व हेतुओंमें नहीं घटित होता है। तस्योपप्लववादियों द्वारा तखोंका विचार के उत्तर कालमें व्युत हो जानेपनको साधने के लिये प्रयुक्त किये गये सभी हेतु स्वरूपासिद्ध हैं। अर्थात्-विचार करनेपर निर्दोष कारकों के समुदायकरके उत्पत्ति हो जानेसे, बाधारहितपनेसे, प्रवृत्ति सामर्थ्यसे, अथवा अन्य प्रकारोंसे, प्रमाण तख व्यवस्थित नहीं हो पाता है । प्रमाणके विना प्रमेयतत्वोंकी व्यवस्था नहीं । अतः तखोपप्लव सिद्धान्त व्यवस्थित है। यह उपप्लववादियोंका अविचार्यमाणस्य हेतु प्रमाण, प्रमेय, आदि तत्त्वोंमें मही विषमान है । या विचार्यमाणत्व हेतु तखोपप्लवमें घटित नहीं होता है। अतः स्वरूपासिद्ध हेत्वामास है । पक्षे हेस्वभावः स्वरूपासिद्धिः ॥ सत्त्वादिः सर्वथा साध्ये शरभंगुरतादिके।
... स्थाद्वादिनः कथंचिन सर्वथैकान्तवादिनः ॥२७॥
बौद्धोंके द्वारा शद्वमें सर्वथा क्षणभङ्गुरपना, अणुपना, असाधारणपना, आदिके साध्य करनेपर दिये गये सस, कृतकत्व, बादिक हेतु स्वरूपासिद्ध हैं । सभी प्रकारोंसे क्षणिकपन, अणुपम, असाधारणपनके एकातिपक्षका कथन करनेवाले बौद्धोंके वे हेतु असद्धेतु है। हो, कथंचित क्षणिकपन आदिको साध्य करनेके लिये दिये गये स्याद्वादियों के यहां सव आदिक हेतुं.लो स्वरूपासिद्ध हत्यामास नहीं है, किन्तु समीचीन हेतु है।
शद्वाद्विनश्वराद्धेतुसाध्ये चाऽकृतकादयः । हेतवोऽसिद्धतां यान्ति बौद्धादेः प्रतिवादिनः ॥ २८ ॥