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तत्वार्थचिन्तामणिः
नैयायिकों का मत है, ज्ञानमें अर्थका सन्निकर्ष होनेपर ही प्रतिबिम्ब ( आकार ) पड सकेगा, ऐसी दशामें साक्षात् या परम्परासे सम्बन्धित होकर आकार डालनेवाले पदार्थोंके ज्ञान में सन्निकर्ष भी उस बौद्धके यहां प्रमाणपनेसे भले प्रकार माना गया हो जाना चाहिये । किन्तु बौद्धोंने सन्निकर्षको प्रमाण माना नहीं है ।
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सारूप्यं प्रमाणमस्याधिगतिः फलं संवेदनस्यार्थरूपतां मुक्त्वार्थेन घटयितुमशक्तेः । नीलस्येदं संवेदनमिति निराकारसंविदः केनचित्प्रत्यासत्तिविप्रकर्षासिद्धेः सर्वार्थेन घटनमसक्तेः सर्वैकवेदनापत्तेः । करणादेः सर्वार्थसाधारणत्वेन तत्प्रतिनियमनिमित्ततानुपपत्तेरित्यपि येनोच्यते तस्य सन्निकर्षः प्रमाणमधिगतिः फलं तस्मादंतरेणार्थघटनासंभवात् ।
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बौद्ध कह रहे हैं कि ज्ञानमें अर्थका पड गया सदृश आकारसहितपना प्रमाण है। क्योंकि प्रमाणस्वरूप उस तदाकारतासे ही ज्ञान नियत पदार्थोंको जानता है । और पदार्थोंकी ज्ञप्ति हो जाना इस प्रमाणका फल है । देवदत्तका धन है । जिनदत्तका घोडा है । यहां स्वस्वामिसम्बन्ध ही देवदत्त और धनका तथा जिनदत्त और घोडेका योजक है। इसी प्रकार घट और ज्ञानका योजक उस घटका ज्ञानमें आकार पड जाना है । अन्यथा ज्ञान तो आत्मास्वरूप अन्तरंग चेतन तव है । और घट विचारा बहिरंग जड पदार्थ है । घटका ज्ञान यह व्यवहार ही अलीक हो जाता । देवदत्त के कमरे में घोडेकी तसवीर टंगी हुयी है । किसीने प्रश्न किया कि यह तसवीर किसकी है ? इसका उत्तर घोडेकी तसवीर है, मिलता है। यहां घोडेका और उस चित्रका योजक सम्बन्ध केवल तदाकारता ही है । भले ही उस चित्रका स्वामी देवदत्त है । यही ढंग घटज्ञान और पटज्ञान में लगा लेना " अर्थेन घटयत्येनां न हि मुक्त्वार्थरूपताम् । तस्मात् प्रमेयाधिगतेः प्रमाणं मेयरूपता ज्ञानका अर्थके साथ सम्बन्ध करानेके लिये अर्थरूपताको छोडकर अन्य कोई समर्थ नहीं है । यानी सविकल्पकज्ञान अर्थके साथ निर्विकल्पक बुद्धिको तदाकारताके द्वारा जोड देता है । उस तदाकारतासे अर्थकी ज्ञप्ति हो जाती है । अतः ज्ञानमें ज्ञेय अर्थका पडा हुआ आकार ही प्रमाण ( प्रामाण्य ) है । यह नीलका सम्वेदन है । यह पीतका सम्वेदन है । इस प्रकार उन नील, पीत, का ज्ञानोंमें आकार पड जानेसे ही षष्ठीविभक्ति द्वारा सम्बन्धयोजक व्यवहार होता है । यदि ज्ञानमें अर्थका आकार पडना नहीं माना जायगा तो निराकार ज्ञानका किसी पदार्थ के साथ निकटपन और दूरपन तो असिद्ध है । इस कारण सभी पदार्थोंके साथ उस ज्ञानकी योजना होनेके कारण सभी पदार्थोंका एक ज्ञान हो जानेकी आपत्ति होगी अर्थात् - सूर्य या चन्द्रमाको सभी जीव अपना अपना कह सकते हैं। उनमें किसीके आधिपत्यकी नियत छाप नहीं लगी हुयी है । वैसे ही आकाररहितज्ञान भी सभी विषयोंके जाननेका अधिकारी हो जाओ निराकार ज्ञान के लिये दूरवर्ती निकटवर्ती और भूत, भविष्यत् के सभी पदार्थ एकसे हैं । किसीके
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