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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
शुक्क बस्त्रोंको काजल शीघ्र काला कर देता है । किन्तु काला अन्धेरा शनैः शनैः पदार्थोंको काला अथवा पीला आदि रंगका बना देता है । काले अन्धेरेसे काला ही पदार्थ रंगा जाय, या रंगा ही जाय यह कोई नियम नहीं है । देखो ! सूर्यके शुक्र आढोकसे कोई पदार्थ नीला, कोई पीला, कोई काला आदि रंगवाले परिणम जाते हैं । कोई वैसे ही रूपमें बने रहते हैं । निमित्त नैमित्तिक सम्बन्ध अचित्य है । न जाने कैसेसे अन्य कैसा ही पदार्थ बन जाय, कोई आश्चर्य नहीं । अन्धकार दूसरोंका रंग, रस, गन्ध, नहीं बदले तो भी कोई सिद्धान्त नहीं बिगडता है। सूक्ष्मतासे विचारा जाय तो अन्धकार और प्रकाशमें धरे हुये पदार्थोके परिणाम न्यारे न्यारे हैं। पशु, पक्षी, बालक अण्डा, या अन्य खाब, पेय, फूल फल, अङ्कुर, आदिकी परिणतियां अंधेरे या उजीतेमें भिन्न भिन्न हैं । प्रकरण में यह कहना है कि सूर्यकिरणें अप्राप्त होकर भी जलको सूर्यमण्डलकी ओर आकर्षण शक्तिके अनुसार खींच लेती हैं। अतः उक्त प्रतिवादियोंकीं ओरसे दिये गये दृष्टान्त हमारे अप्राप्यकारीपन के अनुकूल ही पडे हैं। दूरवर्ती अप्राप्त पदार्थका प्रतिबिम्ब दर्पण के लेता है । यंत्र, तंत्र, दूरसे बैठे हुये ही कार्य करते रहते हैं। तथैव चक्षु भी अयस्कांतपाषाणके समान अप्राप्यकारी है ।
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निःप्रमाणक मुदाहरणमाश्रित्यायस्कांतस्य प्राप्यकारित्वं व्यवस्थापयन् कथं न स्वेच्छाकारी १ तदागमात्सिद्धमिति चेन्न, तस्य प्रत्यागमेन सर्वत्र दृष्टेष्टाविरुद्धेन प्रमाणतामात्मसात्कुर्वता प्रतिहतत्वात् स्वयं युक्त्यननुगृहीतस्य प्रमाणत्वानभ्युपगमाच्च न ततस्तसिद्धिः यतोयस्कांतस्य प्राप्यकारित्वसिद्धौ तेनानैकांतिकत्वं भौतिकत्वस्य न स्यात् ।
प्रमाणोंके आघातको नहीं सहनेवाले हर्र आदि अप्रमाणीक उदाहरणोंका आश्रय लेकर अयस्कांतचुम्बक के प्राप्यकारीपनकी व्यवस्था कराता हुआ वृद्धवैशेषिक अपने मनमाने इच्छापूर्वक कार्यको करनेवाला क्यों नहीं समझा जायगा ? जो मनमानी अयुक्त बातें गढ़ा करता है, वह खिलाडी छोकरेके समान किसी भी निर्णीत पदार्थकी व्यवस्थाको नहीं करा सकता है । यदि प्रतिवादी यों कहें कि उस वैशेषिकके माने हुये आगमसे चुम्बकपाषाणका प्राप्यकारीपना सिद्ध है. 1 आचार्य कह रहे हैं कि यह तो नहीं कहना। क्योंकि तुम्हारे अयुक्तआगमके प्रतिकूल हो रहे और प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणोंसे सर्वत्र अविरुद्ध होनेके कारण प्रमाणपनेको अपने अधीन करनेवाले श्रेष्ठ आगमकरके उस वैशेषिकोंके आगमका पूर्वप्रकरणमें प्रतिघात कर दिया जा चुका है । और जो आगम स्वयं युक्तियोंसे अनुग्रह प्राप्त नहीं हो रहा है, उसको प्रमाणपना स्वीकृत नहीं किया गया है । अन्यथा झूठी गप्पाष्टक, कहानियां और किम्बदन्तियों को भी प्रामाण्य आजायगा । तिस कारण उन हर्ड, मुखवायु, सूर्यकिरण, विना तारका तार आदि दृष्टान्तोंसे उस प्राप्यकारीपनकी सिद्धि नहीं हो पाती है, जिससे कि अयस्कांतका प्राप्यकारीपना सिद्ध हो जानेपर उस अयस्कांतकरके भौतिकत्वहेतुका अनैकान्तिक हेत्वाभासपना न होय । अर्थात् – भौतिकत्व हेतु अयस्कांतकरके व्यभिचारी है, जो कि हमने अठत्तरवीं वार्तिक में कहा था। सभी पौगलिक पदार्थ प्राप्त होकर ही आकर्षण आदि क्रियाओं को करावें,