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तत्वार्थ श्लोकवार्तिके
यह आग्रह प्रशस्त नहीं है। तीर्थकर महाराजके जन्मकल्याण के समय दूरवर्ती अनेक स्थालपर घंटानाद, सिंहनाद, आसनकम्प आदि होने लग जाते हैं । पचास कोस दूर बैठे हुये इष्टेजन करके स्मरण किये जानेपर कदाचित् आंख लेकना, अंगूठा खुजाना आदि क्रियायें हो जाती हैं । ऋतुपरिवर्तन के अवसरपर दूरवर्ती निर्मित्तोंसे न जाने कैसे कैसे नैमित्तिक भाव प्राप्तिके बिना ही होते रहते है । यो अठत्तरमी कारिकासे प्रारम्भ कर भौतिकत्व हेतुका अयस्कान्त आदिकरके आये व्यभिचार दोषको यहांतक पुष्ट कर दिया है।
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तथैव करणत्वस्य मनसा व्यभिचारिता ।
मंत्रेण च भुजंगाद्युच्चाटनादिकरेण वा ॥ ८८ ॥
तिस ही प्रकार करणत्व-हेतुका भी मन इन्द्रिय और सर्प, सिंह, स्त्री, शत्रु आदिके उच्चाटन, निर्विषीकरण, वशीकरण, स्तम्भन, मोहन, विद्वेषण आदिको करनेवाले मंत्रकर के व्यभिचारपिना आता है । अर्थात् भौतिकत्व हेतुके समान करणत्वहेतु भी मन और मंत्र करके व्यभिचारी है ।
शब्दात्मनो हि मंत्रस्य प्राप्तिर्न भुजगादिना । मनागावर्तमानस्य दूरस्थेन प्रतीयते ॥ ८९ ॥
बार बार घुमाकर बोले जा रहे या थोडा भी नहीं घट बढ रहे शब्दस्वरूप मंत्रकी दूरदेश में स्थित हो रहे सर्प आदिके साथ प्राप्ति तो थोडी भी नहीं प्रतीत हो रहीं है । किन्तु मन या मंत्रकरण तो अवश्य हैं। प्रौद्गलिक मंत्र तो भौतिक भी हैं। हां, मनको वैशेषिकोंने मूर्ती में गिनाया हे। पृथ्वी, जल, तेज, वायु और मन ये पांच पदार्थ अपकृष्ट परिमाणवाले होनेसे मूर्तद्रव्य मानें गये हैं । वैशेषिकोंने शब्दस्वरूप मन्त्रको गुणपदार्थ माना है ।
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प्राप्यकारि चक्षुः करणत्वाद्दात्रादिवदित्यत्राप्यंशतः सर्वान् प्रत्युद्योतकरेणोक्तो हेतुरनैकांतिको मनसा मंत्रेण च सर्पाद्याकृष्टिकारिणा प्रत्येयः पक्षच प्रमाणबाधितः पूर्ववत् ।
चक्षु ( पक्ष ) दृश्यविषयके साथ सम्बन्ध कर उसका चाक्षुष प्रत्यक्ष करानेवाली है ( साध्य ) करणपना होने से ( हेतु ) हेसिया, गडसा, छुरिका आदिके समान ( अन्वय दृष्टान्त ) इस प्रकार के यहां अनुमानमें एक एक अंशसे सभी इन्द्रियोंके प्रति या सम्पूर्ण वादियोंके प्रति वैशेषिकोंके प्रशस्तपादभाष्यपर टीका रचनेवाले उद्योतकर विद्वान्करके कहा गया करणत्व हेतु तो मन और सर्प आदिका आकर्षण करनेवाले मंत्रकरके व्यामिचारी है। ऐसा विश्वाससहित निर्णय कर लेना चाहिये । मन और मंत्र दोनों प्राप्त नहीं होकर दूरसे ही कार्य करते रहते हैं । दूसरी बात यह है कि उद्योत - कर पण्डितके इस अनुमानका पक्ष विचारा प्रत्यक्ष, अनुमान, आगमप्रमाणोंसे बाधित भी है ।