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तत्वार्यलोकमालिके
तब हो सकता है, जब कि अनेक अवयवोंपर उसी समय नेत्र किरणे पडें । और उन अवयवों में संयुक्त हो रही सम्पूर्णकिरणोंके साथ मनकी भी युगपत् अधिष्ठिति होय । किन्तु छोटासा परमाणुबराबर मन भला अनेकदेशीय किरणोंमें युगपत् कैसे अधिष्ठान कर सकता है ! यहां चित्रज्ञानमें तो एक अखण्ड अवययी मानकर निर्वाह नहीं हो सकता है । अथवा जहां भूमिपर फैले हुये अनेक भाम्रफलों या पुष्पोंका एक चाक्षुषज्ञान युगपत् किया जा रहा है, वहां भी सजातीय, विजातीय अनेक अखण्ड अवयवियोंमें एक जान कैसे हो सकेगा ! अनेक चरम अवयवियोंका मिलकर एक बड़ा अवयवी फिर तो बन नहीं सकता है। तथा अनेक देशमें पडे, हुये सजातीय, विजातीय, फल, पुष्पोंमें सम्बन्धित हो रही न्यारी न्यारी चक्षुःकिरणोंपर एक अणु मनका अधिकार ( कन्जा) नहीं हो सकेगा। अनेक किरणोंके साथ मनसंयुक्त ही नहीं हो सकता है। और मनरहित किरणों. करके मिनदेशवाले अनेक काले, पीले, नीले, हरे अवयवोंमें एक चित्रका चाक्षुषप्रत्यक्ष नहीं हो सकता है। किन्तु प्रामाणिकपुरुषोंको एक चित्रज्ञान होता तो है। अतः वैशेषिकोंका एक निरंश अवयवीके आश्रय लेनेका कथन युक्त नहीं है।
शैलचंद्रमसोश्चापि प्रत्यासन्नदविष्ठयोः ।। सहज्ञानं न युज्येत प्रसिद्धमपि सद्धियाम् ॥ ५९॥ कालेन यावता शैलं प्रयांति नयनांशवः । केविचंद्रमसं नान्ये तावतैवेति युज्यते ॥ ६॥
दूसरी बात यह है कि चक्षुकिरणों द्वारा विषयकी प्राप्ति माननेपर तुम वैशेषिकोंके यहां अति. निकटपर्वतका और अधिकदूरवर्ती चन्द्रमाका एक साथ ज्ञान युक्तिसहित नहीं हो सकेगा, जो कि समीचीनज्ञान करनेवाले प्रामाणिक पुरुषोंके यहां भी प्रसिद्ध हो रहा है। नयनकी कितनी ही किरणें जितने कालकरके पर्वतको प्राप्त हो रही हैं, उतने ही समय करके अन्य कोई किरणे जाकर चन्द्रमाको प्राप्त हो जाय, यह तो समुचित नहीं होगा। कारण कि निकटवर्ती पर्वत तो झट आँखोंसे प्राप्त किया जा सकता है। किन्तु अधिक दूर हजारों कोसतक चन्द्रमाके पास चक्षु किरणें झट नहीं पहुंच सकती हैं । किन्तु सभी बुद्धिमान् पुरुषोंको चन्द्रमा और पर्वतका या शाखा
और चन्द्रमाका युगपत् चाक्षुषज्ञान हो रहा है। इतने निकट अर्थो और दूरपदार्थोमें चक्षु किरणोंका प्राप्त होना और एक अणुमनका उन किरणोंमें संयुक्त होकर अधिकार जमाना अयुक्त है। किन्तु द्वितीयाके चन्द्रमाको शाखाके अवलम्बसे दिखा देते हैं । अथवा उदय हो रहे पूर्ण चन्द्रको पर्वतके ऊपर साथ साथ देखते हैं । योडी थोडीसी देरमें पलक मार रही यानी भयवश निमेष मेष कर रही चक्षुकी किरणोंका इतना शीघ्र चन्द्रमातक पहुंचना प्रयोगविज्ञानसे सिद्ध