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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
कारण है, ऐसा माना जाता है, तब तो मनका अणुपना होनेके कारण चक्षुकी अनेक और लंबी चौडी मिन्न मिन देशोंमें फैली हुई किरणोंमें अधिष्ठान नहीं हो सकेगा। जैसे कि एक एक परमाणु होकर बहुतसे देशोंमें फैल रहे परमाणुओंमें एक परमाणुका युगपत् अधिष्ठातापन नहीं बन पाता है, एक छोटी परमाणु एक समयमें एक ही परमाणुपर अधिकार जमा सकती है । एक परमाणु बराबर हो रहा मन असंख्य किरणोंपर अपना अधिकार कैसे भी नहीं आरोप सकता है । ऐसी दशामें अधिक लंबे चौडे महान् पर्वतकी चक्षुद्वारा ज्ञप्ति होना युक्त नहीं पडेगा। उस मनकी क्रम, क्रमसे अनेक किरणोंमें अधिष्ठिति मानी जावेगी, तब तो उस पर्वतके छोटे छोटे अंशोंमें ही अनेक ज्ञान हो सकेंगे । लम्बे चौडे एक महान् पर्वतका एक ज्ञान नहीं हो सकेगा। किन्तु एक महान् पर्वतका एक चाक्षुषप्रत्यक्ष हो रहा है । पर्वतकी एक एक अणुको क्रमसे जानते हुये तो अनन्त वर्षोंमें भी पर्वतको जान लेना नहीं संभवता है।
निरंशोवयवी शैलो महीयानपि रोचिषा । नयनेन परिच्छेद्यो मनसाधिष्ठितेन चेत् ॥ ५७ ॥ न स्यान्मेषकविज्ञानं नानावयवगोचरम् । तद्देशिविषयं चास्य मनोहीनेगंशुभिः ॥ ५८॥
इसपर वैशेषिक यदि यों कहें कि बहुत बडा भी पर्वत अंशोंसे रहित हो रहा, एक अखण्ड अवयवी द्रव्य है, जो कि चक्षुःकिरणोंमें सम्बन्धित हो रहा संता मनकरके अधिष्ठित हो रहे चक्षुद्वारा चारों जोर जाना जा सकता है । अर्थात् लम्बा चौडा एक अखण्ड अवयवी हाथी जैसे शिरके एक कोने में लगी हुयी अंकुशकी छोटीसी नोकसे अधिकृत बना रहता है । महान् पर्वत भी एक अवयवी है । हम वैशेषिक उसमें अंशोंको सर्वपा नहीं मानते हैं । यदि जैन मन्तव्य अनुसार पर्वतमें अंश मान लिये जाते, तब तो जिस अंशमें चक्षुःकिरण सम्बन्धित होती, उतने ही अंशका ज्ञान हो सकता था । सम्पूर्ण अंशोंमें समवेत हो रहे अवयवीका ज्ञान नहीं हो पाता। किन्तु जब अनेक अवयवोंसे एक अखण्ड नवीन अवयवी पर्वत निरंश बन चुका तो फिर किसी भी एक स्थळमें किरणोंका संयोग हो जानेपर और चक्षुकिरणोमेंसे किसी भी एक किरणमें मनका अधिष्ठान हो जानेपर महान् एक पर्वतका चाक्षुषप्रत्यक्ष सुलभतासे हो सकता है। इसमें संशटकी कौनसी बात है ! इस प्रकार वैशेषिकोंके कहनेपर तो हम जैन कहते हैं कि रंग बिरंगे चित्रमें या अनेक रंगके छीट वस्त्रमें अनेक अवयवोंके विषय करनेवाला और उस उस देशमें वर्त रहे अवयवोंको विषय कर जाननेवाला चित्रज्ञान तो मनके अधिष्ठातृत्वसे रहित हो रही चक्षुःकिरणोंकरके नहीं हो सकेगा, अर्थात्-भिन्न मिन देशोंमें पडे हुये चित्र विचित्ररंगके अवयवोंका एक ही समय चित्रज्ञान तो