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तत्वार्थकोकवार्तिके
नेत्रके तैजस पदार्थ ही सहायक हुये । प्रन्थकार कहते हैं कि यह वैशेषिकोंका कहना युक्तिरहित है। क्योंकि अंजन, काजल, तैल, आदिमें छिपे हुये तेजोदव्यके सद्भावका साधक कोई प्रमाण नहीं है । यदि वैशेषिक यह अनुमान प्रमाण देवें कि अंजन, रगरा, चश्मा आदिक [ पक्ष ] तेजस पदार्य है ( साध्य ) रूपको प्रकाशनेमें नेत्रोंके सहकारी कारण होनेसे (हेतु ) जैसे कि दीपक, बिजली आदिक हैं, ( अन्वयदृष्टांत )। आचार्य कहते हैं कि यह वैशेषिकोंका अनुमान तो समीचीन नहीं है । क्योंकि चन्द्रउद्योत, माणिक्य प्रकाश, आदिक करके व्यभिचार हो जाता है। वे तैजस नहीं होते हुए भी नेत्रोंके सहकारी है । यदि वैशेषिक उनको पक्ष नहीं होते हुये भी अञ्जन आदिके साथ पक्षकोटिमें कर लेंगे, अर्थात्--चन्द्र उधोत, आदिको भी तैजसपना साधनेको उद्युक्त हो जायंगे, अतः व्यभिचार नहीं होगा, मान लेंगे, सो यह तो नहीं समझना ।क्योंकि ऐसी दशामें नयनसहकारित्व हेतुको बाधित हेत्वाभास हो जानेका प्रसंग हो जायगा । अंजन, चन्द्रोद्योत, सुरमा आदिमें तैजसपना साधनेपर प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम प्रमाणोंसे पक्षबाधित हो नाता है । देखिये, उन अंजन, उपोत, आदिकोंका प्रत्यक्षप्रमाण द्वारा अतैजसपनास्वरूप करके अनुभव हो रहा है । अतः काले अंजन, पीले उद्योत, अभासुर चश्मा, आदिका तैजसपना प्रत्यक्षबाधित है । वैशेषिकोंने भी इनको पार्थिव माना है । तुम्हारे अनुमानमें इस अनुमानप्रमाणसे भी बाधा यों आती है कि चन्द्रोद्योत (पक्ष ) तैजस नहीं है ( साध्य ), नेत्रोंको आनन्दका कारण होनेसे ( हेतु ) जल, कर्पूग, ममीरा, आदिके समान ( अन्वयदृष्टान्त )। इस प्रकार अनुमानसे बाधा होनेके कारण तुम्हारा नयनसहकारित्व हेतु सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास भी है। प्रायः अतैजस, शीतल, पदार्थ ही नयनोंके आनन्ददाता हैं। तथा आगमप्रमाणसे भी तुम्हारा हेतु बाधित है । मूलमें जो उष्ण है और जिसकी प्रभा भी उष्ण है, वह तैजस पदार्थ है। जैनसिद्धान्तमें सूर्यकी प्रभाको उष्ण होनेपर भी मूलमें सूर्यको उष्ण नहीं होनेके कारण तेजस नहीं माना गया है। मोटे तारमें बह रही किन्तु नहीं चमक रही प्रभारहित विधुतशक्तिके अति उष्ण होनेपर मी उसकी उष्णकान्ति नहीं होनेके कारण उसको तैजस महीं माना गया है । भावार्थ-जबतक बिजली तारमें या बिजली घरमें बह रही है या संचित हो रही है, उस समय उष्णप्रभा नहीं होनेके कारण उसमें तैजसकायके जीवोंकी सम्भावना नहीं है । हाँ, काचके लटूमें भीतर चमक जानेसे अथवा बिजलीकी सिगडीमें दहक जानेपर तेजस् कायके जीव उत्पन्न हो जाते हैं । ' मूलोण्हपहा अग्गी" यहां अग्निका अर्थ तेजोद्रव्य है । अतः मूलमें उष्ण और उष्णप्रभावाले पदार्थको तेजोद्रव्यका परिचायक श्रेष्ठ आगम वाक्य हो जानेपर आगमसे भी चन्द्रोद्योतका तैजसपना बाधित हो जाता है । यदि वैशेषिक यह आगम दिखलायें कि समुद्रके जलकी लहरोंकरके चन्द्रकान्तमणिके साथ प्रतिघातको प्राप्त हो रही सूर्यकिरणे ही चन्द्रविमान द्वारा प्रकृष्ट उद्योत कर रही हैं । अथवा सूर्यकिरणे ही समुद्रमल्से