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________________ तत्वार्थचिन्तामणिः ५०९ मिज्ञान आदि ज्ञान भी हो जाते हैं तथा तीन सूत्रों के साप भविष्यके " व्यंजनस्यावग्रहः " इस चौथे सूत्रका योग कर देनेपर वह अर्थ समझ लेना चाहिये कि धर्मी व्यक्त अर्थ और अव्यक्त अर्थके बहु आदिक धर्मोका अवग्रह हो जाता है । व्यक्त अर्थक धोके ईहा आदिक या स्मरण आदिक मतिज्ञान भी हो जाते हैं। .. का पुनर्यो नामेत्याह। - -- यह सूत्रमें कहा गया अर्थ फिर भला क्या पदार्थ है ! इस प्रकार शिष्यकी प्रतिपित्सा होनेपर श्रीविद्यानन्दी आचार्य उत्तर कहते है सो सुनो। यो व्यक्तो द्रव्यपर्यायात्मार्थः सोत्राभिसंहितः। अव्यक्तस्योचरे सूत्रे व्यंजनस्योपवर्णनात् ॥२॥ द्रव्य और उसके अंशरूप पर्यायोंसे तदात्मक हो रहा जो धर्मी वस्तुभूत व्यक्त पदार्थ है वह इस प्रकरणमें अर्थ शब्दकरके अभिप्रायका विषय हो रहा है। अग्रिम भविष्यसूत्रमें अव्यक्त व्यंजनका निकट ही वर्णन किया जायगा । इस कारण यहां व्यक्तवस्तुको अर्थ कहना अभिप्रेत है। केवलो नार्थपर्यायः सूरेरिष्टो विरोधतः । तस्य बह्वादिपर्यायविशिष्टत्वेन संविदः॥३॥ तत एव न निःशेषपर्यायेभ्यः पराङ्मुखम् । द्रव्यमयों न चान्योन्यानपेक्ष्य तवयं भवेत् ॥ ४ ॥ धर्मी अर्थसे रहित केवल अर्थकी पर्यायें स्वरूप ही अर्थ श्री उमास्वामी आचार्यको इष्ट नहीं है, क्योंकि विरोध दोष है । धर्मीके विना केवल पर्यायस्वरूप धर्मीका ठहरना विरुद्ध है । द्रव्यरूप अंश और पर्यायरूप अंश दोनों भी अंशी वस्तुमें प्रतीत हो रहे हैं । बहु, बहुविध, आदि पर्यायोंसे सहितपनेकरके उस अर्थके सम्वेदन पामर जनोंतकमें प्रसिद्ध हो रहे हैं । तिस ही कारण तो सम्पूर्ण पर्यायोंसे पराङ्मुख हो रहा द्रव्य भी अर्थ नहीं मानना चाहिये । माला एकसौ आठ. दानोंसे सहित है और सभी दानोंमें डोराका अन्वय पुवा हुआ है । तथा परस्परमें एक दूसरेकी अपेक्षा नहीं रखते हुए केवल द्रव्य या अकेले पर्याय ये दोनों भी स्वतंत्ररूपसे अर्थ नहीं है। जैसे कि केवळ धड या अकेला निरपेक्ष शिर जीवित मानव शरीर नहीं है। परमार्थरूपसे स्वकीय द्रव्य और पर्यायोंके साथ तदात्मक हो रही वस्तु ही अर्थ है।
SR No.090497
Book TitleTattvarthshlokavartikalankar Part 3
Original Sutra AuthorVidyanandacharya
AuthorVardhaman Parshwanath Shastri
PublisherVardhaman Parshwanath Shastri
Publication Year1953
Total Pages702
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size21 MB
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