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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
या सर्वथा अनेकका चित्र नहीं बन सकता है, किन्तु अनेक स्वभाववाले एकका चित्ररूप माना जाता है। इस बातको हम प्रायःकरके पहिले प्रकरणोंमें कह चुके हैं।
नन्वेवं द्रव्यमेवैकमनेकखभावं चित्रं स्यान पुनरेकं रूपं । तथा च तत्र चित्रव्यवहारो न स्यात् । अत्रोच्यते
जैनोंके ऊपर कोई शंका उठाता है कि इस प्रकार अनेक स्वभाववाला एक द्रव्य ही तो चित्र हो सकेगा, किन्तु फिर कोई एक रूपगुण तो चित्र नहीं हो सकेगा । और तैसा होनेपर उस चित्रवर्णमें चित्रपनेका व्यवहार नहीं बना, इस प्रकार सकटाक्ष शंका होनेपर यहां श्रीविद्यानन्द आचार्यद्वारा समाधान कहा जाता है।
चित्रं रूपमिति ज्ञानमेव न प्रतिहन्यते ।
रूपेप्यनेकरूपत्वप्रतीतेस्तद्विशेषतः ॥ २७ ॥ - यह चित्ररूप है इस प्रकारके ज्ञान होनेका कोई प्रतिवात नहीं किया जाता है। द्रव्यके समान रूपगुणमें भी अनेक स्वभाववालापना प्रतीत हो रहा है । स्याद्वादसिद्धान्त अनुसार द्रव्य, गुण, पर्यायोंमें भी अनेक खभाव माने गये हैं। अपने अपने उन विशेषोंकी अपेक्षासे रूप, रस, आदि गुण या पर्यायें भी अनेक स्वभाववाली होकर चित्र कहीं जा सकती हैं । कोई बिगाड नहीं है। एक ही हरे रंगमें तारतम्य मुद्रासे नाना हरे पदार्थोके रंगोंकी अपेक्षा अनेक स्वभाव हैं। वे न्यारे न्यारे कार्योंको भी कर रहे हैं । कथंचित् अभेद मान लेनेपर संपूर्ण कार्य संध जाते हैं ।
ननु रूपं गुणस्तस्य कथमनेकस्वभावत्वं विरोधात् । नैतत्साधु यतः।
यहां किसीकी शंका है कि रूप तो गुण है। उस गुणको अनेक स्वभावसहितपना भला कैसे माना जा सकता है ? क्योंकि विरोध दोष उपस्थित होगा । अर्थात् अनेक गुण और पर्यायोंको धारनेसे द्रव्य तो अनेक स्वभाववाला हो सकता है, किंतु एक गुणमें या एक एक पर्यायमें पुनः अनेक स्वभाव नहीं ठहर पाते हैं । अनवस्थाका भी भय है । इस शंकाका आचार्य समाधान करते हैं कि यह कहना सुन्दर नहीं है जिस कारणसे कि सिद्धान्त यों व्यवस्थित हो रहा है।
गुणोनेकस्वभावः स्याद्र्व्यवन गुणाश्रयः।. इति रूपगुणेनेकस्वभावे चित्रशेमुषी ॥२८॥
अनन्त गुणोंका समुदाय ही द्रव्य है । अतः अभिन्न हो जानेसे द्रव्यके समान गुण भी अनेक स्वभावोंसे सहित हो सकेगा। किंतु " द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः " इस सूत्रके अनुसार वह गुण अन्य गुणों का आश्रय नहीं है । भावार्थ:-जिस प्रकार पुद्गल द्रव्यमें रूप, रस, अस्तित्व, वस्तुत्व आदि गुण जड रहे हैं, आत्मामें चेतना, सम्यक्त्व, द्रव्यत्व आदि गुण खचित