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तत्त्वार्थ लोक वार्तिके
आलोचनसंकल्पनाभिमननाध्यवसाननामानो ऽवग्रहादयः प्रधानस्य विवर्ताश्चेतना पुंसः स्वभाव इति येप्याहुस्तेपि न युक्तवादिनः, स्वसंवेदनात्मकत्वादेव तेषामात्मस्वभावत्वप्रसिद्धेरन्यथोपगमे स्वसंवित्तिविरोधात् । न हीदं स्वसंवेदनं भ्रांतं बाधकाभावादित्युक्तं पुरस्तात् ।
कपिल मतानुयायी मानते हैं कि पदार्थोंका सामान्यरूपसे आलोचन करना अवग्रह 1 यह इन्द्रियोंद्वारा हुआ प्रकृतिका विवर्त है । " संकल्प करना " ईहा है। यह भी मनद्वारा हुआ प्रकृतिका परिणाम है । " यह ऐसा ही है। इस प्रकार अभिमान करना अवाय है, जो कि प्रकृतिकी अहंकाररूप पर्याय है । तथा दृढ निर्णय करलेना धारणा है । यह तो प्रकृतिका बुद्धिरूप पहिला परिणमन है । अतः हमारे यहां आलोचन, संकल्पन, अभिमान, अध्यवसाय, नामोंको धारनेवाले अवग्रह आदिक ज्ञान प्रकृतिके ही परिणाम हैं। हां, चेतना तो पुरुषका स्वभाव है । आचार्य कहते हैं कि इस प्रकार जो भी सांख्य कह रहे हैं, वे भी युक्तिपूर्वक कहने की टेव रखनेवाले नहीं हैं। क्योंकि उन आलोचन आदिक रूप अवग्रह आदि ज्ञानोंको स्वसम्वेदनस्वरूप होनेके कारण ही आत्मस्वभावपना प्रसिद्ध हो रहा है। दूसरे ढंगसे यानी जडप्रकृतिका धर्म मानने पर तो उनका स्वसम्वेदन होना विरुद्ध पडेगा । जैसे कि घट, पट होना नहीं बनता है । इन अवग्रह आदिकोंका हो रहा यह स्वसम्वेदन क्योंकि इस प्रत्यक्षका बाधक प्रमाण कोई उपस्थित नहीं होता है। इस बातको इम पहिले प्रकरणों में
आदिका स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष
प्रत्यक्ष भ्रान्त नहीं है ।
परिणाम हैं । बुद्धि और चेतनामें कोई
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कह चुके हैं । अतः अवग्रह आदिक ज्ञान चेतन आत्माके विशेष अन्तर नहीं है । बुद्धिको प्रकृतिका धर्म माननेपर आत्मतत्त्वकी कल्पना व्यर्थ पडती है । अथवा जैसे किसी मनोनुकूल खाद्य पदार्थ या रमणीय स्पृश्य पदार्थका प्रसङ्ग प्राप्त होनेपर क्रमसे उसमें आलोचन, संकल्प, अभिमान, अध्यवसाय होते हैं। यदि ये आत्मासे सर्वथा भिन्न प्रकृतिके विवर्त हैं, तब तो वस्तुतः जड हैं । स्वसम्वेद्य नहीं हो सकते हैं । किन्तु इनका स्वसम्वेदन हो रहा है ।
ननु दूरे यथैतेषां क्रमशोथें प्रवर्तनं ।
संवेद्यते तथासन्ने किन्न संविदितात्मनाम् ॥ २७ ॥ विशेषणविशेष्यादिज्ञानानां सममीदृशं ।
वेद्यं तत्र समाधानं यत्तदत्रापि युज्यते ॥ २८ ॥
अब यहां अवग्रह आदिक मतिज्ञानोंकी क्रमसे प्रवृत्ति होने में शंका की जाती है कि जिस प्रकार दूरवर्ती पदार्थ में इन अवग्रह आदि ज्ञानोंका क्रम क्रमसे प्रवर्तना अच्छा जाना जा रहा है,