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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
सम्वित्तिका ग्राह्य नहीं हो सकता है, तो कौनसे समयका पदार्थ ज्ञानका ग्राह्य है। इसमें हमारा यह उत्तर है कि ज्ञानके समानकालमें रहनेवाला ही पदार्थ ग्राह्य होता है, यह समझ लेना चाहिये । ज्ञानके उत्पादक कारण तो पूर्वक्षणवत्ती ही पदार्थ हो सकते हैं । किन्तु ज्ञान के विषयभूत पदार्थ ज्ञानके समानकालवर्ती भी हैं।
नन्वेवं योगिविज्ञानं श्रुतज्ञान स्मृतिप्रत्यभिज्ञादि वा कथमसमानकालार्यपरिच्छिदि सिध्येदिति चेत्, समानसमयमेव ग्राह्यं संवेदनस्येति नियमाभावात् । अक्षज्ञानं हि स्वसमयवर्तिनमर्थ परिच्छिनत्ति स्वयोग्यताविशेषनियमाद्यथा स्मृतिरनुभूतमात्र पूर्वमेव प्रत्यभिज्ञातीतवर्तमानपर्यायवृत्त्येकं पदं चिंता त्रिकालसाध्यसाधनव्याप्ति स्वार्थानुमानं त्रिकालमनुपेयं श्रुतज्ञानं त्रिकालगोचरानंतव्यंजनपर्यायात्मकान् भावान् अवधिरतीतवर्तमानानागतं च रूपिद्रव्यं मनःपर्ययोऽतीतानागतान् वर्तमानांश्वार्थान् परमनोगतान् , केवलं सर्वद्रव्यपर्यायानिति वक्ष्यतेग्रतः।।
___ यहां बौद्धकी या किसी तटस्थ विद्वान्की बहुत अच्छी शंका है कि समानसमयवाले पदार्थोको ही यदि ज्ञानका विषय माना जायगा तो योगी सर्वज्ञके विज्ञान भला वर्तमान ज्ञानके असमान कालीन भूत, भविष्य, पदार्थोको प्रत्यक्ष जाननेवाले कैसे सिद्ध होंगे ? अथवा भूत, भविष्य, वर्तमान, त्रिकालवर्ती पदार्थीको परोक्ष जाननेवाला आगमजन्य ज्ञान कैसे सध सकेगा ! तथा स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, व्याप्तिज्ञान, आदिक भला भूत, भविष्यकालीन पदार्थोको जाननेवाले कैसे माने जावेंगे ! इस प्रकार शंका करनेपर तो हम उत्तर देते हैं कि समानसमयवर्ती ही पदार्थ सम्बेदनके ग्राह्य होते हैं, ऐसा नियम हम नहीं करते हैं। बौद्धोंके विचार अनुसार वर्तमानकालके अर्थज्ञान के विषय नहीं हो पाते हैं । अतः बल देकर हमने कह दिया है (था ) । एवका अर्थ अपि है, यानी ही का अर्थ भी समझना । देखिये, ज्ञानोंमेंसे इन्द्रियजन्यज्ञान तो नियमसे अपने समयमें ही वर्त रहे अर्थको जानता है। क्योंकि अपने आवरण कर्मोकी.क्षयोपशमरूप योग्यताके विशेषनियमसे ऐसा ही व्यवस्थित हो रहा है । इन्द्रियजन्य ज्ञान भूत, भविष्यकालके अाँको नहीं जान सकते हैं । अतः चक्षुः रसना आदिसे वर्तमानकालमें वर्त रहे रूप, रस, रूपवान्, रसवान् , आदि पदार्थ ही जाने जाते हैं । जिस प्रकार कि स्मरणञ्चान अपनी क्षयोपशमरूप योग्यताके अनुसार पूर्वमें अनुभूत हो चुके ही केवल भूतकालके अर्थोको जानता है । तथा प्रत्यभिज्ञान तो भूत और वर्तमान कालकी पर्यायोंमें वर्त रहे एक पदार्थको जानता है, अथवा · वर्तमानकालके सादृश्य, दूरपन, स्थूलपन आदि अर्थीको भी जानता है। तथा चिंताज्ञान तीनों कालके साध्य और साधनोंका उपसंहार कर अविनाभावसम्बन्धको जान लेता है। एवं खार्थानुमान कालत्रयवर्ती अनुमेय पदार्थीको परोक्षरूपसे जान लेता है । इसी प्रकार आप्त वाक्यजन्य श्रुतज्ञान या अनक्षरात्मक अवाच्य श्रुतज्ञान तो अत्यन्तपरोक्ष भी तीन कालमें वर्त रहे संख्यात असंख्यात अनन्त व्यंजनपर्यायस्वरूप भावोंको अविशद जान लेता है। अवधिज्ञान अपने