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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
योग्य भूत, भविष्य, वर्तमान, तीनों काल के रूपीद्रव्योंको प्रत्यक्षरूपसे विषय कर लेता है। और मनःपर्यय ज्ञान तो अपने और पराये मनमें स्थित हो रहे अतीत, अनागत, वर्तमान, कालके अर्थीको विशद जान रहा है । तथा सर्वोत्तम केवलज्ञान तो त्रिकालवी सम्पूर्ण द्रव्य और पर्यायोंको अतिविशद रूपसे जान रहा है। इस प्रकरणको श्रीउमास्वामी महाराज अग्रिम ग्रन्थद्वारा स्पष्ट निरूपण कर देवेंगे।
ततो नाकारणं वित्तेर्विषयोस्तीति दुर्घटम् ।
स्वं रूपस्याप्रवेद्यत्वापत्तेः कारणतां विना ॥ १४ ॥
तिस कारण सिद्ध हुआ कि ज्ञानका विषय ज्ञानका कारण नहीं है । बौद्धोंका यह कहना कि “ नाकारणं विषयः " ज्ञानका जो कारण नहीं है, वह ज्ञानका विषय नहीं है। यह मन्तव्य कैसे भी परिश्रमसे घटित नहीं हो सका है। देखो, कारणपनके विना भी ज्ञानका स्वकीयरूप मले प्रकार वेध हो रहा है। यदि ज्ञानके कारणको ही ज्ञानका विषय माना जायगा तो ज्ञानके स्वशरीरको नहीं वेद्यपना होनेका प्रसंग आवेगा जो कि बौद्धोंको इष्ट नहीं है । बौद्धोंने ज्ञानका खसम्वेदन प्रत्यक्ष होना स्वीकार किया है। और स्वयं ही स्वका कारण हो नहीं सकता है । " नैकं स्वस्मात् प्रजायते "। : - संवेदनस्य नाकारणं विषय इति नियमे स्वरूपस्याप्रवेद्यत्वमकारणत्वात् तद्वद्वर्तमानानागतानांमतीतानां चाऽकारणानां योगिज्ञानाविषयत्वं प्रसज्यते । . सम्वेदनका जो उत्पादक कारण नहीं है, वह सम्वेदनका विषय नहीं है । इस प्रकार बौद्धों द्वारा नियम कर चुकनेपर तो ज्ञानके स्वरूपको असम्वेद्यपना प्राप्त होगा। क्योंकि ज्ञानकी उत्पत्तिमें ज्ञान तो स्वयं कारण नहीं बना है। यदि कारण नहीं हुये विना भी ज्ञानका स्वसम्वेदन प्रत्यक्षद्वारा विषय होना मान लोगे तो उसीके समान वर्तमान, भविष्य, और अतीतकालके अर्थ जो कि योगीज्ञानके कारण नहीं बने हैं, वे सर्वज्ञज्ञानके विषय हो जायेंगे, कोई क्षति नहीं पड सकती है। अन्यथा उसीके समान वर्तमान, भविष्य और चिर अतीत पदार्थोको योगीज्ञानके विषय नहीं होनेका प्रसंग आवेगा । क्योंकि वे त्रिकालवर्ती पदार्थ योगीज्ञानके उत्पादक कारण नहीं हो सके हैं। जो कार्यकी उत्पत्तिमें सहायक होकर अर्थक्रियाको कर रहे हैं वे अव्यवहित पूर्वक्षणके पदार्थ तो कारण माने जाते हैं । किन्तु जो बहुत देर पहिले मर चुके हैं, या भविष्य कालकी गोदमें पडे हुये हैं, वे पदार्थ क्या राख कार्य करेंगे ! स्वयं आत्मलाभ रखते हुये पदार्थ ही कार्यकी उत्पत्तिको करा सकते हैं। दो वर्ष पूर्वमें मर चुका पति या दो वर्ष पीछे विवाहित होनेवाला पति पतिस्ता स्त्रीके अधुना संतानको उत्पन्न नहीं करा सकता है। किन्तु बौद्धोंने योगीशानद्वारा त्रिकालवर्ती पदार्थोका जानना अभीष्ट किया है।