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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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तथार्थजन्यतापीष्टा कालाकाशादितत्त्ववत् । सालंबनतया त्वों जनकः प्रतिषिध्यते ॥ १३ ॥
आलोकके द्वारा भी ज्ञानका जन्यपना माननेपर आलम्बनरूपसे आलोकको ज्ञानके प्रति कारणता नहीं है । किन्तु कतिपय चक्षुइन्द्रियोंको बल ( अतिशय ) प्राप्त करा देना केवल इतना ही सहारा दे देनेसे काल, आकाश, आदि तत्वोंके समान आलोकको भी निमित्त माना जा सकता है। और तिसी प्रकार बलाधायकरूपसे ज्ञानमें अर्थजन्यपना भी इष्ट कर लिया जाता है । प्रमेयत्वगुणका भोग होनेसे अर्थीका अपने अपने कालमें सद्भाव रहना मात्र ज्ञानका बलाधायक बन सकता है । किन्तु सालम्बनरूप करके तो अर्थका जनकपना निषेधा जा रहा है । अर्थात्-बूढे पुरुषको लठिया पद पदपर जैसे आलम्बन हो रही है, वैसे ज्ञानकी उत्पत्ति करनेमें ज्ञेय अर्थ सहायता नहीं दे रहे हैं । ज्ञानका ज्ञेयके साथ विषयविषयीमावके अतिरिक्त कोई कार्यकारण आधार आधेयभाव सम्बन्ध नहीं माना गया है। .
- इदमिह संप्रधार्य किमस्मदादिसत्यज्ञानत्वेनालोको निमित्तमात्रं चाक्षुषज्ञानस्येति प्रतिपाद्यते कालाकाशादिवत् आहोखिदालंवनत्वेनेति ? प्रथमकल्पनायां न किंचिदनिष्टं द्वितीयकल्पना तु न युक्ता प्रतीतिविरोधात् । रूपज्ञानोत्पत्ती हि चक्षुर्बलाधानरूपेणालोकः कारणं प्रतीयते तदन्वयव्यतिरेकानुविधानस्यान्यथानुपपत्तेः तद्वदर्थोपि यद्याचक्षणज्ञानस्य जनका स्यान किंचिद्विरुध्यते तस्यालंबनत्वेनै जनकत्वोपगमे व्याघातात् । आलंबन बालंबनत्वं ग्राह्यत्वं प्रकाश्यत्वमुच्यते तच्चार्यस्य प्रकाशकसमानकालस्य दृष्टं यथा प्रदीपः खप्रकाशस्य । न हि प्रकाश्योर्थः स्वप्रकाशकं प्रदीपमुजनयति खकारणकलापादेव तस्योपजननात् ।
ग्रन्थकार कहते हैं कि यहां यह विचार चलाकर निर्णय कर लेना चाहिये कि हम आदि लौकिक जीवोंके सत्यज्ञानपने करके आलोक चाक्षुष प्रत्यक्षका काल, आकाश, आदिके समान केवल निमित्तकारण है। ऐसा समझा रहे हो ? अथवा क्या आलोकको चक्षु-इन्द्रियजन्य प्रत्यक्षका आलम्बनपनेकरके कारणता आप वैशेषिक बखान रहे हो ? इसका उत्तर वैशेषिक स्पष्ट कहें । पहिले पक्षकी कल्पना करनेपर तो हम जैनोंको कोई अनिष्ट नहीं है। अर्थात्-सम्पूर्ण कार्योंमें जैसे काल, आकाश, आदि पदार्थ अप्रेरक होकर निमित्तकारण हो रहे हैं। वैसे ही मनुष्य आदिके चाक्षुषज्ञानका आलोक भी सामान्य निमित्त हो जाता है। हां, द्वितीयपक्षकी कल्पना करना तो युक्तिपूर्ण नहीं है । क्योंकि प्रतीतियोंसे विरोध हो जावेगा। देखिये, मार्जार, व्याघ्र, आदि जीवोंके चाक्षुषप्रत्यक्षमें तो आलोक कारण कथमपि नहीं है । हां, मन्दतेजको धारनेवाली चक्षुओंसे युक्त हो रहे मनुष्य, कबूतर, तोता आदिकोंको रूपके ज्ञानकी उत्पत्ति करनेमें चक्षुका बलापानरूप 54