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तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिके
अत्रार्थजन्यमेव विज्ञानमनुमानासिद्ध नार्थाजन्यं यतस्तव्यवच्छेदार्थमुत्तरावधारणं स्यादिति मन्यमानस्यानुमानमुपन्यस्य दूषयन्नाह । .
यहां बौद्ध कहते हैं कि लोकमें प्रसिद्ध हो रहा प्रत्यक्षस्वरूप विज्ञान तो विकल्परहित खलक्षणरूप अर्थसे जन्य हो ही रहा है । इस बातको हम अनुमानसे सिद्ध कर चुके हैं। अतः कोई भी यथार्थज्ञान अर्थसे अजन्य नहीं है, जिससे कि उस अर्थजन्यपनका निषेध करनेके लिये पिछला अवधारण किया जाय, इस प्रकार मान रहे बौद्धोंके अनुमानका उपकथन कर उसको दूषित करते हुये श्री विद्यानन्द आचार्य स्पष्ट निरूपण करते हैं ।
स्वजन्यज्ञानसंवेद्यार्थः प्रमेयत्वतो ननु । यथानिंद्रियमित्येके तदसयभिचारतः ॥ ८॥ निःशेषवर्तमानार्थो न खजन्येन सर्ववित् ।
संवेदनेन संवेद्यः समानक्षणवर्तिना ॥९॥
बौद्धोंकी अनुज्ञा है कि अर्थ ( पक्ष ) अपनेसे उत्पन्न हुये ज्ञान करके भले प्रकार जानने योग्य है ( साध्य ), प्रमेयपना होनेसे ( हेतु ), जैसे कि मन ( दृष्टान्त ), अर्थात्-मन इन्द्रियको मन इन्द्रियजन्य अनुमान द्वारा ही जाना जाता है। अथवा जैन लोग क्षयोपशमको क्षयोपशमजन्य ज्ञान द्वारा जान लेते हैं। इस प्रकार मनको बडा अच्छा दृष्टांत पाकर कोई एक बौद्ध कह रहे हैं। वह उनका कहना प्रशंसनीय नहीं है । क्योंकि व्यभिचार दोष हो रहा है । देखिये, वर्तमान कालके सम्पूर्ण अर्थ तो स्वयं अपनेसे उत्पन्न हुये ज्ञानद्वारा नहीं जाने जा रहे हैं । जानने योग्य अर्थके समानक्षणमें वर्त रहे सम्वेदनकरके वह अर्थ नहीं जाना जा सकता है। अर्थात्-बौद्ध, नैयायिक, जैन, मीमांसक, सभीके यहां यह निर्णीत हो चुका है कि अव्यवहित पूर्वक्षणमें वर्तनेवाले कारण द्वितीय क्षणवर्ती कार्योंका सम्पादन करते हैं। बैलके डेरे सीधे सींगों समान एक ही क्षणमें रहनेवाले पदार्थोमें परस्पर कार्यकारणभाव नहीं माना गया है। अतः ज्ञानके भी कारण उसके पूर्व समयमें रहनेवाले पदार्थ हो सकते हैं । किन्तु क्षणिकवादियोंके मत अनुसार ज्ञानकी उत्पत्ति हो जानेपर वे कारण अर्थ नष्ट हो जाते हैं। ऐसी दशामें बौद्धोंके यहां कोई भी विद्यमान पदार्थ स्वजन्यज्ञान द्वारा वेद्य नहीं हो सकेगा। अर्थके कालमें स्वजन्यज्ञान नहीं और ज्ञानकालमें अर्थ नहीं रहा तथा बौद्धोंके यहां स्वसम्वेदन प्रत्यक्ष भी नहीं बन सकेगा। किन्तु बौद्धोंने ज्ञानजन्य न होते हुये भी ज्ञानका सम्वेदन प्रत्यक्षसे ज्ञान होना माना है। अर्थजन्यपनेका ज्ञानमें आग्रह करनेपर सर्वज्ञता नहीं बन सकती है। क्योंकि चिरतर, भूत, और भविष्यकालों तथा वर्तमानकालके अर्थोको सर्वज्ञज्ञानमें कारणपना नहीं बन सकनेसे बुद्धकी सर्वज्ञता क्षीण हो जायगी। केवलज्ञानके अव्यवहित पूर्ववत्ती