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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
उपकरणमें अङ्गुलके असंख्यातवें भाग अवगाहनावाला द्रव्य मन कभी किसी पाखुरीपर चला जाता है। कभी कर्णिकामें आ बैठता है। अतः विचलित हो रहा मन नियत स्थितपनेसे इष्ट की गयीं पांच इन्द्रियोंसे भिन्नपनेको अपने अधीन करता संता दोपनेको प्राप्त हो रहा है। आत्माकी मन इन्द्रियावरणके क्षयोपशम अनुसार विचाररूप परिणति भावमन है। और हृदयस्थ कमलमें मनोवर्गणासे बन गया पौद्गलिक पदार्थ द्रव्यमन है। आठ पत्तेवाले कमलसे अतिरिक्त स्थानोंपर मनकी गतिको हम जैन इष्ट नहीं करते हैं। जैसे कि नैयायिक एक ही समयमें लाखों योजन तक. मनका चला जाना आ जाना अभीष्ट करते हैं । सर्वव्यापक आत्मामें चाहे जहां मन घूमता रहता है । परमामुके बराबर मन है, ऐसा हम स्याद्वादी नहीं मानते हैं । जब कि इन्द्रियों और मनको भेदसहित द्वितीय अध्यायमें कह देवेंगे ही, इस कारण यहां उनका व्याख्यान नहीं करते हैं । मतिज्ञानके बहिरंग कारण उनको समझ लेना चाहिये।
किमिदं ज्ञापकं कारकं वा तस्येष्टं कुतः स्वेष्टसंग्रह इत्याह । ....... क्या ये इन्द्रिय, अनिन्द्रिय उस मतिज्ञानके ज्ञापक हेतु है ! अथवा कारक हेतु इष्ट किये हैं ! बताओ । किस ढंगसे इनको हेतु मानकर अपने इष्ट सभी भेदोंका संग्रह हो सकता है ! ऐसी प्रतिपाद्यकी आकांक्षा होनेपर विद्यानन्द आचार्य स्पष्ट कथन करते हैं। - निमित्तं कारकं यस्य तत्तथोक्तं विभागतः।
वाक्यस्यास्य विशेषादा पारंपर्यस्य चाश्रितौ ॥५॥
जिसका निमित्त कारण जो कहा जाता है, वह उसका तिस प्रकार कारक हेतु, समझना चाहिये । इस सूत्रके वाक्यका विशेषकरके योग-विभाग करनेसे सभी इष्टभेदोंमें इन्द्रिय अनिन्द्रिय निमित्तपना बन जाता है । अथवा परम्पराका आश्रय करनेपर तो योगविभाग न करते हुये भी स्पर्शज्ञान, रूपज्ञान, स्मृति, चिंता आदिमें इन्द्रिय और मनका निमित्तपना घटित हो जाता है।
__ तद्धि निमित्तमिह न ज्ञापकं तत्प्रकरणाभावात् । किं तर्हि । कारकं । तथा च सति प्रकृतमिद्रियमनिद्रियं च निमित्तं यस्य तत्तथोक्तमेकं मतिज्ञानमिति ज्ञायते इष्टसंग्रहः । पुनरस्य वाक्यस्य विभजनात्तदिद्रियानिद्रियनिमित्तं धारणापर्यंतं तदनिंद्रियनिमित्तं स्मृत्यादीनां सर्वसंग्रहात् ।
___वह निमित्तपना यहां ज्ञप्तिके निमित्त कारण ज्ञापकपनेसे गृहीत नहीं किया है । क्योंकि यहां उन ज्ञापक हेतुओंका प्रकरण नहीं है । ज्ञापकज्ञान स्वयं कारकोंसे बनाया जा रहा है, तो क्या है ? इसका उत्तर वे कारक हेतु है, यह है और तैसा होनेपर बहुव्रीहि समासकी सामर्थ्यसे वे इन्द्रिय, अमिन्द्रिय, जिसके निमित्त हैं, वह तिस प्रकारका एक मतिज्ञान कहा गया है। इस प्रकार मतिज्ञानके इष्ट किये गये सभी भेदप्रभेदोंका संग्रह कर लिया गया समझ लेना चाहिये । इस