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तत्त्वार्यचिन्तामणिः
तथैवाभाव पूर्विकार्थापत्तिरभावप्रमाणविज्ञातादर्थाद्यथास्माद्गृहाद्वहिस्तिष्ठति दत्तो जीवित्वे सत्यत्राभावान्यथानुपपत्तेरिति ।
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देव
तिस ही प्रकार अभाव प्रमाणद्वारा ठीक जान लिये गये अविनाभूत अर्थसे अदृष्ट हो रहे अन्य अर्थमें कल्पना उठाना अभावपूर्वक अर्थापत्ति है। जैसे कि इस घरसे बाहर प्रदेशमें देवदत्त ठहरा हुआ है । क्योंकि जीवित होते संते देवदत्तका यहां घर में नहीं रहना अन्यथा यानी बाहर ठहरनेके विना असम्भव है । यदि देवदत्त जीवित न होता तब तो यहां घरमें भी नहीं पाया जाता और घर से बाहर चौपारि, बाग, प्रामान्तर, आदिमें भी नहीं पाया जाता, किन्तु देवदत्त जीवित है ।' और यहां नहीं है | अतः आसपास बाहर गया हुआ है । यह अर्थापत्तिसे जान लिया जाता है । यहां जीवित देवदत्तका घरमें नहीं ठहरना तो अभाव प्रमाणसे जान लिया, पुन: अनन्यथाभूत बाहर ठहरना अभावप्रमाणपूर्वक अर्थापत्तिसे जाना गया है। इस प्रकार छह प्रमाणोंसे उत्पन्न हुई अर्थापत्तियोंको परोक्षप्रमाणके मेदोंमें परिगणित करना जैनोंको आवश्यक है । नहीं कहने से अव्याप्त दोष आता है ।
एतेनाभावस्य प्रमाणांतरत्वमुक्तमुपमानस्य वा वस्तुनो सतः सदुपलंभकप्रमाणाप्रवृत्तेरभाक्यमाणस्यावश्याश्रयणीयत्वात् । सादृश्यविशिष्टाद्वस्तुनो वस्तुविशिष्टाद्वा सादृशात् परोक्षार्थप्रतिपत्तिरभ्युपगमनीयत्वाच्चेति केचित् ।
इस उक्त कथनसे अभावप्रमाणको भी स्मृति आदिकोंसे न्यारा प्रमाणपना कह दिया गया समझ लेना चाहिये तथा सादृश्यको विषय करनेवाला उपमान भी न्यारा प्रमाण है । वस्तुके सद्भा बोको ही जाननेवाले प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, शाद, अर्थापत्ति इन पांच प्रमाणोंकी वस्तुके असद्भाव ( अभाव ) को जाननेमें प्रवृत्ति नहीं होती है । अतः अभावको जाननेके लिये अभाव प्रमाणका आश्रय करना भी अत्यावश्यक है। जैसे अभावको जाननेवाले प्रमाणकी भावोंको जाननेमें गति नहीं है । उसी प्रकार अभावको जाननेमें भाव उपलम्भक प्रमाणोंको भी आज्ञा प्राप्त नहीं है । विषयोंके अनुसार प्रमाण भी न्यारे न्यारे होने चाहिये तथा उपमानका भी म्यारा प्रमाणमना यों आवश्यक है कि सादृश्यविशिष्ट वस्तुसे अथवा वस्तुविशिष्ट सादृश्यसे परोक्ष अर्थकी प्रतिपत्ति करना सभी वादियोंको स्वीकार करने योग्य है, इस प्रकार कोई मीमांसक विद्वान् बडी देरसे कह रहे हैं । संभवः प्रमाणान्तरमाढकं दृष्ट्वा संभवत्यर्द्धाढकमिति प्रतिपचेरन्यथा विरोधात् । प्रातिभं च प्रमाणान्तरमत्यंताभ्यासादन्यजना वेद्यस्य रत्नादिप्रभावस्य झटिति प्रतिपत्तेदर्शनादित्यन्ये ।
किन्हीं विद्वानका कहना है कि सम्भव भी न्यारा प्रमाण है । आढकको देखकर इसमें अर्द्ध आढक (अढैया ) सम्भव रहा है । तौलने या नापनेका एक विशेष परिमाण आढक है । उसक 1
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