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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
सहितपनके विना गवयपना नहीं बनता है। यहां गौके सदृश गवय होता है। ऐसे वृद्धवाक्यको सुनकर वनमें जाकर ढांट और गलकम्बलसे रहित हो रहे बैल सरीखे पशुको देखकर " यह गवय है " ऐसा उपमान प्रमाण ( सादृश्य प्रत्यभिज्ञान ) द्वारा जान लिया जाता है । पुनः गवयपनेसे वाह आदि अतीन्द्रिय शक्तियोंका अर्धापत्ति द्वारा ज्ञान कर लिया जाता है।
तथागमपूर्विका आगमविज्ञातादर्थादर्थप्रतिपादनशक्तिः शद्धो नित्यार्थसंबंधित्वान्यथानुपपत्तेरिति ।
___ तिसी प्रकार आगमप्रमाणद्वारा जान लिये गये अर्थसे अविनाभावी अदृष्ट अर्थका ज्ञान कर लेना आगमपूर्वक अर्थापत्ति है । जैसे कि यह शब्द ( पक्ष ) अमुक अर्थको प्रतिपादन करनेकी शक्तिसे तदात्मक हो रहा है ( साध्य ) । नित्य ही अर्थके साथ संबंध सहितपना अन्यथा यानी अर्थ प्रतिपादनशक्तिके साथ तदात्मक हुये विना बन नहीं सकता है ( हेतु )। यहां स्वाभाविकी योग्यता
और संकेतके वश शब्द और अर्थके नित्य रहनेवाले संबंध सहितपनको आगम प्रमाणद्वारा निर्णीत कर पुनः नित्य ही अर्थके संबंधीपनसे शद्बकी अर्थ प्रतिपादनशक्तिका अर्थापत्ति द्वारा ज्ञान कर लिया जाता है।
तथार्थापत्तिपूर्विकार्थापत्तिपत्तिप्रमाणविज्ञातादाद्यथा रात्रिभोजनशक्तिः विवादापन्नो देवदत्तोयं रात्रिभोजित्वान्यथानुपपत्तेरिति ।
मीमांसक ही कहते चले आ रहे हैं कि प्रत्यक्ष, अनुमान, आदिको कारण मानकर पहिली अर्थापत्ति बना ली जाय, पुनः उस अर्थापत्ति प्रमाणसे जान लिये गये अर्थसे अविनाभावी हो रहे अदृष्ट अर्थकी दूसरी इप्ति करना अर्यापत्तिर्विका अर्थापत्ति कही जाती है। जैसे कि भोजन कर सकनेवाला और भोजन नहीं कर सकनेवाला, इस प्रकार विवादमें पड़ा हुआ यह देवदत्त ( पक्ष ) रातको खानेकी शक्तिसे युक्त है ( साध्य ), क्योंकि अर्थापतिसे जान लिया गया रात्रिभोजीपना अन्यथा यानी भोजन करनेकी शक्तिके विना अनुपपन्न है ( हेतु )। यहां प्रत्यक्षप्रमाणसे देवदत्तके अविकृत मोटेपनको देखकर दिनमें नहीं खानेवाले, चिरजीवी, देवदत्तका रात्रिमें डटकर भोजन करना पहिली अर्थापत्तिसे जान लिया जाता है । पुनः रात्रिभोजीपनकी अन्यथानुपपत्तिसे रातमें भोजन करनेकी शक्तिका ज्ञान दूसरी अर्थापत्तिसे किया जाता है। इससे भी आगे तीसरी अर्थापत्तिको उठाकर देववदत्तका द्रव्यपना या अवतीपना जाना जा सकता है। इसके उपरांत भी चौथी अर्थापत्तिसे तिर्यञ्च आयुके बंधकी योग्यता जानी जा सकती है। किन्तु इतनी ऊंची कोटीतक चलना विद्वानोंका उद्देश्य रहता है। साधारण लौकिक जनोंकी तो एक, दो, अर्थापत्ति या अनुमानको उठाकर ही जिज्ञासा शान्त हो जाती है । हां, विशेष जिज्ञासा बढनेपर लौकिक जन भी किसी जटिल विषयमें प्रन्थियोंको सुलझानेके लिये अनेक प्रमाण उठाकर विवादोंको सिद्धान्तमार्गपर ले आते हैं।