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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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स्थूलस्तनसे सहित शरीरवाला है । अर्थात् देवदत्तके शरीरमें और विशेषकर छातीपर स्तनोंमें मोटापन है जो कि स्थूलता बीमारीकी सूजन ततैया, बरं, आदिके काटेकी नहीं है । जो जीव बहुत दिनोंसे दिनमें नहीं खा रहा है, और बहुत दिनतक जीवित रहता है, उसके वक्षःस्थलकी स्थूलता रातको खाये विना नहीं स्थिर रह सकती है । रातको खाते हुये देवदत्तको यद्यपि नहीं देखा है, फिर भी उक्त प्रकारके मोटे पुष्ट शरीरधारीपनसे रात्रिमें भोजन करना अर्थापत्तिसे जान लिया जाता है । जैनसिद्धान्त अनुसार तीर्थकर महाराज, कामदेव, बलभद्र, आदि महान् पुरुषोंके यद्यपि तपश्वरण करते समय दिनरात उपवास करनेपर भी वक्षःस्थलकी सुन्दरस्थूलतामें कोई अन्तर नहीं पडता है। भगवान् श्रीआदीश्वर महाराज या बाहुबलीस्वामीने एक वर्षपर्यन्त निराहार रहकर तपश्चर्या की थी। फिर भी उनके शरीरमें कोई शिथिलता, लटजाना, दुर्बलता आदिके चिन्ह नहीं प्रगट हुये थे । भोगभूमियां लम्बे चौडे शरीरवाले होकर भी एक दो, तीन, दिन पीछे अति अस्प आहार करते हुए पुष्ट, बलिष्ट, स्थूल, सुन्दर शरीरवाले होकर अधिक कालतक जीवित रहते हैं। देवता तो कभी कवल आहार नहीं करते हैं। उनके तो वर्षों पीछे कंठसे झरे हुये अमृतका मानस आहार है । फिर भी मीमांसकोंने वर्तमानकालके अन्नकीट पुरुषोंकी अपेक्षा यह उदाहरण दिया है । चलो अच्छा है। अनुमानपूचिका वानुमानविज्ञातादाद्यथागमनशक्तिमानादित्यादिर्गत्यन्यथानुपपत्तेरिति ।
मीमांसक ही कहे जा रहे हैं कि अनुमानपूर्वक अर्थापत्ति तो इस प्रकार है कि अनुमानप्रमाणोंद्वारा जान लिये गये अर्थसे अदृष्ट अर्थको जानलेना जैसे कि सूर्य, चन्द्रमा, रक्त, आदिकपदार्थ ( पक्ष ) गमनशक्तिसे युक्त हो रहे हैं ( साध्य ) क्योंकि देशसे देशांतर जानारूप गति होना उनमें गमनशक्तिके विना नहीं बन सकता है । सूर्यका विमान अत्यधिक चमकीला है। हम लोग आंखें खोलकर बहुत देरतक सूर्यकी गतिको देखने के लिये तो नहीं बैठ सकते हैं । और चन्द्रमाकी गतिको प्रत्यक्ष करनेके लिये भी कोई ठलुआ नहीं बैठा है । हां, कोई इस चन्द्रमाकी गतिको जाननेके लिये ही कमर कसकर बहुत देरतक बैठा रहे तो उसको चन्द्रमाकी गतिका प्रत्यक्ष हो सकता है। काले कांच, वस्त्र आदिकी परम्परासे सूर्यकी गतिका भी प्रत्यक्ष हो सकता है, किन्तु जिस विद्वान् ने पहिला अनुमान उठाकर देशसे देशान्तर होनारूप-हेतुसे सूर्यकी गतिका अनुमान किया है, और पीछे गतिकी अन्यथानुपपत्तिसे अर्थापत्ति द्वारा सूर्यमें गमन करनेकी अतीन्द्रियशक्तिको जाना है । वह अनुमानपूर्वक अर्थापत्तिका उदाहरण यहां मीमांसकोंने दिया है। तथोपमानपूर्विकोपमानविज्ञातादर्थाद्वाहादिशक्तिरयं गवयो गवयत्वान्यथानुपपत्तेरिति ।
तथा उपमानप्रमाणपूर्वक अर्थापत्ति यों मानी गई है कि उपमान प्रमाणसे जानलिये गये अनन्यथाभूत अर्थसे अदृष्ट अर्थकी जो कल्पना की जाती है । जैसे कि यह रोझ पशु (पक्ष ) लादना, दौडना, आदि शक्तियोंसे युक्त है ( साध्य ) अन्यथा यानी दौडना आदि शक्तियोंसे