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तत्वार्थचिन्तामणिः
विधौ तदुपलंभः स्युर्निषेधेनुपलब्धयः । ततश्च षड्विधो हेतुः संक्षेपात्केन वार्यते ॥ ३३४ ॥
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कारणसे कार्यमें (का) अनुमान करामेबाळा पूर्ववत् हेतु माना जाता है । और कार्यसे कारणमें अनुमान करानेवाला शेषवत् है । विषये सप्तमी विभक्तिः । क्योंकि हेतुकी अपने साध्य के साथ नियत स्थिति होनी चाहिये तथा कार्यकारणरहित पदार्थसे तिस प्रकार के कार्यकारणरहित साध्य में जिस हेतुसे अनुमान किया जायगा वह दृष्ट हेतु. होगा । यदि यदि इस प्रकार नैयायिकोंद्वारा व्याख्यान होना संभव है, तब तो विधिको उन पूर्ववत आदि तीनके उपलम्भ हुये और निषेधको साधने में उन तीनकी अनुपलब्धियां हुई । तिस ढंग करके तो संक्षेपसे हुये छह प्रकारके हेतुका कौन निवारण करता है ? अर्थात् हम स्याद्वादी भी किसी अपेक्षासे पूर्ववत आदिकोंकी उपलब्धि और अनुपलब्धिके मेदसे छह प्रकारका हेतु अभीष्ट करते हैं। किसी भी वस्तुकें प्रकारों की गणना अनेक अपेक्षाओंसे भिन्न भिन्न ढंगकी हो जाती है
अत्र निषेधेनुपलब्धय एवेति नावधार्यते स्वभावविरुद्धोपलब्ध्यादीनामपि तत्र व्यापारात् तत एंव विधावेवोपलब्धय इति नावधारणं श्रेय इत्युक्तमायं ।
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इस प्रकरणमें निषेधको साधनेमें अनुपलब्धियां ही उपयोगी हो रही हैं, यह अवधारण नहीं करना चाहिये । क्योंकि स्वभावसे विरुद्ध उपलब्धि आदिकोंका भी उस निषेधको सांधने में व्यापार हो रहा है । यहां अग्नि नहीं है, क्योंकि विशेष ठंड छूई जा रही है । इसमें अनिके स्वभाव उष्णप से विरुद्ध शीतपनेकी उपलब्धिसे अनिका अभाव साधा गया है । तिस ही कारण विधिको साधने में ही उपलब्धियां चलती हैं । यह अवधारण ( आग्रह ) करना श्रेष्ठ नहीं है । देखो, शीतस्पर्शकी विधिको साधने में अग्नि आदि उष्ण द्रव्योंकी अनुपलब्धि हेतु माना जाता है। इस बतिको हम पूर्व प्रकरणों में कह ही चुके हैं। format
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एतेन प्राग्व्याख्यानेपि पूर्ववदादीनामुपलब्धयस्तिस्रो नुपलब्धयश्चेति संक्षेपात् षड्विधो हेतुरनिवार्यत इति निवेदितं । अतिसंक्षेपाद्विशेषतो द्विविधः उच्यते सामान्यादेक एवान्यथानुपपत्ति नियमलक्षणोर्थ इति न किंचिद्विरुद्धमुत्पश्यामः ।
इस कथन से यह भी निवेदन कर दिया गया समझो कि पूर्वमें किये हुये व्याख्यानमें भी पूर्ववत् आदिकोंकी उपलब्धियां तीन हैं। और पूर्ववत् आदिकोकी अनुपलब्धियां तीन हैं। इस प्रकार संक्षेपसे छह प्रकारका हेतु नहीं निवारण किया जाता है। हां, अत्यन्त संक्षेपसे भेदोंकी विवक्षा करनेपर तो दो प्रकारका हेतु कहा जाता है । और सामान्यकी अपेक्षासे तो अन्यथानुपपत्तिरूप नियम नामके लक्षणसे युक्त हो रहा यह हेतु एक ही है। इस प्रकार कथन करनेमें कुछ भी विरुद्ध हमको नहीं देख रहा है । अर्थात् सामान्यकी अपेक्षासे एक ही हेतु अन्यथानुपपत्तिस्वरूप