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तत्त्वार्थचिन्तामणिः
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सहचर कार्य की अनुपलब्धि तो इस प्रकार दिखलाई गई है । मेरी आत्माके ( पक्ष ) मति अज्ञान, श्रुतअज्ञान, आदिकभाव नहीं हैं, ( साध्य ), कारण कि परलोक, स्वर्ग, मोक्ष, पुण्य, पाप, आदि पदार्थोके नास्तिपनके आग्रह, अभिनिवेश, आदिका अभाव है। यहां निषेध्य - कुमतिज्ञानका सहचारी मिथ्या श्रद्धान है । उसका फल नास्तिकपनेका अध्यवसाय, कलुषता, तीव्रक्रोध, विपरीतज्ञान, आदिक हैं । उनका अभाव अनुभूत हो रहा है । अतः यह सहचर कार्य अनुपलब्धि हेतु है । मिथ्यादर्शनका कार्य नास्तिक्प परिणाम है । वह सहचारीपनकरके मति अज्ञान आदिसे विशिष्ट हो रहा है | यह विद्वानोंके सन्मुख स्पष्ट विषय है ।
सहचारिनिमित्तस्यानुपलब्धिरुदाहृता । दृष्टिमोहोदयासिद्धेरिति व्यक्तं तथैव हि ॥ ३२७ ॥
निषेध्य के सहचारीके निमित्तकी अनुपलब्धि तो इस प्रकार उदाहरण प्राप्त की गई है कि मेरी आत्मा में ( पक्ष ) मति अज्ञान आदि नहीं हैं ( साध्य ), क्योंकि दर्शनमोहनीय कर्मके उदयकी असिद्धि हो रही है । तिस ही प्रकार यह उदाहरण भी प्रकट है । मति अज्ञानका सहचारी मिथ्याश्रद्धा है । उस मिथ्या श्रद्धानका निमित्तकारण दर्शनमोहनीय कर्मका उदय है । अतः यह सहचारी- निमित्त - अनुपलब्धि है या सहचारि - कारणानुपलब्धि है ।
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सहभूव्यापकादृष्टिर्नास्ति वेदकदर्शनैः ।
सहभाविमतिज्ञानं तत्त्वश्रद्धानहानितः ॥ ३२८ ॥
साथ होनेवाले ( सहचर ) के व्यापककी अनुपलब्धि तो इस प्रकार है कि मुझमें क्षायोपश• मिक सम्यग्दर्शनोंके साथ होनेवाला मतिज्ञान नहीं है ( साध्य ), क्योंकि तत्त्वोंके श्रद्धानकी हानि देखी जाती है ( हेतु )। यहां निषेध्य मतिज्ञानका सहचारी क्षयोपशम सम्यक्त्व है । उसका व्यापक तत्वश्रद्धान है । अतः यह सहचर व्यापक अनुपलब्धि है ।
सहभूव्यापित्वाद्यदृष्टयोप्यविरोधतः ।
प्रत्येतव्याः प्रपंचेन लोकशास्त्रनिदर्शनैः ॥ ३२९ ॥
सहचरव्यापक- हेतु अनुपलब्धि या सहचरव्यापककार्य - अनुपलब्धि आदिक भी विस्तार - करके लोकप्रसिद्ध और शास्त्रप्रसिद्ध दृष्टान्तोंद्वारा समझ लेनी चाहिये । यह ध्यान रहे कि कोई प्रत्यक्ष आदि प्रमाणोंसे विरोध प्राप्त न हो जाय । जैसे कि इस चक्रपर ( पक्ष ) कुशूल नहीं हुआ है ( साध्य ), कारण कि शिवकके पीछे छत्रकी अनुपलब्धि हो रही है ( हेतु ) । यह कारण-कारणकारण - अनुपलब्धि है । निषेध करने योग्य कुशूलका कारण कोश है । और कोशका कारण स्थास