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तत्वार्थचिन्तामणिः
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आत्मामें ( पक्ष ) पुनः संसारमें जन्म लेना सम्पूर्णरूपप्ते नहीं है ( साध्य ) ज्ञानावरण आयुष्य आदि सम्पूर्ण कर्मों के उदयका अभाव होनेसे ( हेतु ) । संसारमें जन्ममरण करनेका कारण आयुष्यकर्म या राग, द्वेष, योग, और द्रव्यकर्म हैं । इनका व्यापक सम्पूर्ण कर्मोंमेंसे चाहे किसीका भी उदय है । अतः यह कारण - व्यापक अनुपलब्धि है ।
तद्धेतुहेत्वदृष्टिः स्यान्मिथ्यात्वाद्यप्रसिद्धितः । तन्निवृत्तौ हि तद्धेतुकर्माभावात्क संसृतिः ॥ ३१९ ॥
उस निषेध्यके हेतुओं हेतुओंकी अनुपलब्धि तो यों होगी कि किसी आत्मामें (पक्ष) फिर संसारकी उत्पत्ति नहीं है (साध्य ), क्योंकि मिथ्यादर्शन, अविरत, कषाय आदिकी अप्रसिद्धि हो रही है ( हेतु ) | उन मिथ्यास्त्र आदिकी निवृत्ति हो चुकनेपर उनका कारण मानकर उत्पन्न होनेवाले कर्मो का अभाव हो जाता है । और समस्त कर्मोका अभाव हो जानेसे फिर भला संसारकी उत्पत्ति कहां हो सकती है ? अर्थात् कर्मरहित जीवकी पुनः संसारमें उत्पत्ति, विपत्तियां नहीं हो पाती हैं। यहां निषेध करने योग्य संसार में जन्म लेना है, उसका कारण समस्त कर्मोंका या यथायोग्य कर्मोंका उदय है । और कर्मके उदयका कारण तो मिध्यात्व, अविरति, आदिक हैं । अतः हेतु हेतुकी अनुपलब्धि मिध्यात्व आदिकी असिद्धि है ।
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तत्कार्यव्यापकासिद्धिर्यथा नास्ति निरन्वयं ।
तत्त्वं क्रमाक्रमाभावादन्वयैकांततत्त्ववत् ॥ ३२० ॥
उस निषेध्य के कार्यके व्यापककी अनुपलब्धिका उदाहरण यह है कि सत्स्वरूपतत्त्व (पक्ष)
पूर्व उत्तर पर्यायोंमें अन्वय नहीं रखता हुआ, क्षणिक हो रहा नहीं है ( साध्य ) क्रम और अकम नहीं बन रहा होनेसे ( हेतु ) जैसे कि सर्वथा कूटस्थवादी द्वारा माना गया कोरा अन्वय रख रहा सर्वथा नित्य एकान्तरूप तत्त्व नहीं है ( दृष्टान्त ), अथवा अन्वय नहीं रखता हुआ क्षणिक पदार्थ ( पक्ष ) तत्त्व नहीं है ( साध्य ) क्रम और अक्रम नहीं बनने से ( हेतु ) | यहां साध्य दल निषेध्य पडे हुये तत्वका कार्य अर्थक्रिया है । तथा अर्थक्रियाके व्यापकक्रम और अक्रम हैं । अतः उन क्रम, अक्रमोंकी अनुपलब्धि होनेसे यह कार्य व्यापक अनुपलब्धि है ।
तत्कार्यव्यापकव्यापि पदार्थानुपलंभनं ।
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परिणामविशेषस्याभावादिति विभाव्यताम् || ३२१ ॥
उस निषेध्यके कार्यके व्यापकके व्यापक हो रहे पदार्थकी अनुपलब्धि तो इस प्रकार समझ लेनी चाहिये कि बौद्धों द्वारा माना गया निरन्वय क्षणिक पदार्थ ( पक्ष ) तत्त्व नहीं है ( साध्य ) उत्पाद, व्यय, धैव्यरूप परिणाम विशेषका अभाव होने से ( हेतु ) | यहां निषेध्य तत्वका कार्य