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तत्त्वार्थाचन्तामाणिः
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___ ननु च यवबीजसंतानोत्थं च कारणं वानुभयं वा स्यात् सर्व वस्तुकार्य वा नान्या गतिरस्ति यतोऽन्यदपि लिंग संभाव्यतेऽन्यथानुपपन्नत्वाध्यासादिति चेन्न, उभयात्मनोपि वस्तुनो भावात् । यथैव हि कारणात्कार्येऽनुमानं वृष्टयुत्पादनशक्तयोमी मेघा गंभीरध्वानत्वे चिरप्रभावत्वे च सति समुन्नतत्वात् प्रसिद्धैवंविधमेघवदिति । कार्यात्कारणे वहिरा धूमान्महानसवदिति । अकार्यकारणादनुभयात्मनि ज्ञानं मधुररसमिदं फलमेवंरूपत्वात्तादृशान्य फलवदिति । तथैवोभयोत्मकात् लिंगादुभयात्मके लिंगिनि ज्ञानमविरुद्धं परस्परोपकार्योपकारकयोरविनाभावदर्शनात्, यथा बीजांकुरसंतानयोः। न हि बीजसंतानोंऽकुरसंताना. भावे भवति, नाप्यंकुरसंतानो बीजसंतानाभावे यतः परस्परं गम्यगमकभावो न स्यात् । तथा चास्त्यत्र देशे यवबीजसंतानो यवांकुरसंतानदर्शनात् । अस्ति यवांकुरसतानो यवबीजोपलब्धेरित्यादि लिंगांतरसिद्धिः।
कार्य आदि तीन हेतुओंको माननेवालेका अनुनय है कि तीन हेतुओंमें ही सम्पूर्ण हेतु भेदोंका अंतर्भाव हो जाता है । जौके अंकुरोंकी संतानको साधनेवाला जौके बीजोंकी संताननामका हेतु भी इन ही में प्रविष्ट हो जाता है। देखिये । जौके बीजकी संतानसे उत्पन्न होना या तो कारण हेतु है । अथवा कार्यकारण दोनोंसे भिन्न तीसरी जातिका हेतु है। या कार्यरूप हेतु होगा। संसारमें सभी वस्तुयें कार्य १ कारण २ अकार्यकारण ३ इन तीन स्वरूप ही तो होंगी । अन्य चौथा कोई उपाय नहीं है । जिससे कि इन तीनसे न्यारे और भी किसी हेतुकी सम्भावना की जाय, जो कि अन्यथानुपपत्तिके अधिष्ठित करनेसे जैनों द्वारा न्यारा माना जा रहा है । ग्रन्थकार कहते हैं कि यह अनुनय तो उनको नहीं करना चाहिये । क्योंकि चौथे प्रकारको कार्यकारण दोनों स्वरूप हो रही वस्तु भी विद्यमान है । जिस ही प्रकार पहिला कारणसे अवश्य कार्यमें अनुमान कर लेते हो कि ये दीखते हुये मेघ ( पक्ष ) वृष्टिको उत्पन्न करानेवाली शक्तिसे युक्त हैं (साध्य ), गम्भीर शद्ववाले और अधिक देरतक घटा माडकर ठहरनेवाले प्रभाव या प्रभवसे युक्त होते संते भले प्रकार उन्नत हो रहे हैं ( हेतु ), वृष्टि करनेवालेपनसे प्रसिद्ध हो रहे इस प्रकारके अन्य मेघोंके समान ( दृष्टान्त ) । तथा दूसरा हेतुद्वारा कार्यसे कारणका अनुमान कर लेते हैं कि इस पर्वतमें अग्नि है। क्योंकि धुआं दीख रहा है । रसोई घरके समान, यह कार्यहेतु है । तथा कार्यकारण रहितसे दोनोंसे मिन्नस्वरूप उदासीनपदार्थका ज्ञान होना तीसरा अनुमान है। उसका दृष्टान्त यह है कि यह आम्रफल ( पक्ष ) मीठा रसवाला है ( साध्य ), इस प्रकार कोमलता ( नरमाई ) को लिये हुये पीला आदिरूप धारनेसे (हेतु), तिस प्रकारके मीठे, पीले, अन्य फलोंके समान (अन्वयदृष्टान्त ), यह तीसरे प्रकारका हेतु है । इन तीन हेतुओंके समान तिस ही प्रकार चौथा हेतु भी मानना आवश्यक है। कार्यकारण इन दोनों स्वरूपसाध्यके ज्ञान हो जानेमें भी कोई विरोध नहीं आता है। परस्परमें एक दूसरेका उपकारक रहे और उपकृत हो रहे पदार्थोंमें भी एक दूसरेके साथ अविनामाव