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तत्त्वार्थश्लोकवार्तिके
प्रकारका प्राण आदिसे रहित जीवित शरीर नहीं है ( उपनय )। तिस कारण जीवितशरीर आत्मासे सहित है ( निगमन ) । यह केवलव्यतिरेकी हेतुका उदाहरण प्रसिद्ध है । सो यह भी उन न्यारे नैयायिकोंके यहां माना गया " पूर्ववत् सामान्यतोऽदृष्ट " हेतु साध्यका बोधक नहीं हो सकता है । क्योंकि साध्यसे विरुद्ध हो रहे भस्म आदि विपक्षमें यद्यपि अनुभव नहीं किया जा रहा है, तो भी साध्याभावरूप विपक्षमें हेतुको स्वयं नहीं रहनेपनसे निश्चय नहीं हो रहा है । उन उन विपक्षोंमें उस हेतुके विद्यमान रहनेकी सम्भावना हो जाना माननेपर तो प्राणादिमत्त्व हेतु व्यभिचारी बन जावेगा।
. साध्यविरुद्ध एव साध्याभावस्ततो निवर्तमानत्वाद्गमकमेवेदमिति चेत् तर्हि तदन्यथानुपपन्नत्वसाधनं साध्याभावसंभवानियमस्यैव स्याद्वादिभिरविनाभावस्येष्टत्वात् न पुनः केवलव्यतिरेकित्वान्नेदं क्षणिकं शद्धत्वाच्चित्तशून्यं जीवच्छरीरं प्राणदिमत्वात् सर्व क्षणिकं सत्चादित्येवमादेरपि गमकत्वमसंगात् ।।
इसपर यदि नैयायिक यों कहें कि साध्यसे विरुद्ध ही तो साध्याभावरूप विपक्ष है । उस विपक्षसे निवृत्त हो रहा होनेके कारण यह प्राणादिमत्त्व हेतु आत्मसहितपनेका गमक ही है । तब तो हम जैम कहेंगे कि वह केवलव्यतिरेकीपना हेतुकी अन्यथानुपपत्तिको साध रहा है। साध्यके अभाव होनेपर हेतुका नियमसे असम्भव होनेको ही स्याद्वादियोंने अविनाभाव अभीष्ट किया है । तब तो अन्यथानुपपत्तिसे ही हेतुका गमकपना सिद्ध हुआ। किन्तु फिर केवल व्यतिरेकीपनसे नहीं। यदि अन्यथानुपपत्तिका त्यागकर कोरे केवलव्यतिरेकीपनसे ही हेतुको गमक माना जायगा तो यह ( पक्ष ) क्षणिक नहीं है ( साध्य ), शद्बपना होनेसे (हेतु), इस अनुमानका शद्बत्व हेतु भी गमक हो जाओ। किन्तु नैयायिकोंने शब्दको दो क्षणतक ठहरनेवाला क्षणिक माना है “ योग्यविभुविशेषगुणानां स्वोत्तरवर्तियोग्यविभुविशेषगुणनाश्वत्वनियमात् ", पहिले क्षणमें शब्द उत्पन्न होता है। दूसरे क्षणमें ठहरता है । तीसरे क्षणमें नष्ट हो जाता है। हां, अपेक्षाबुद्धिका तीन क्षणतक ठहरना इष्ट किया है । अतः नैयायिकोंके यहां क्षणिकत्वका अभाव साधनेके लिये दिया गया शद्वत्व हेतु सद्धेतु नहीं माना गया है । भले ही वह बिजली वकला आदि विपक्षोंमें नहीं ठहरे तथा जीवितशरीर ( पक्ष ) आत्मासे रहित है ( साध्य ), प्राण आदि करके विशिष्ट होनेसे ( हेतु ) और सम्पूर्णपदार्थ (पक्ष ) क्षणिक हैं ( साध्य ) सत्रूप होनेसे ( हेतु ) इस प्रकारके अन्य भी छाया, अग्नि आदि हेतुओंको भी अपने सध्यकी ज्ञप्ति करानेपनका प्रसंग आवेगा । कौन रोक सकता है । ___. साध्याभावेप्यस्य सद्भावान साधनत्वमिति चेत् तबन्यथानुपपत्ति बलादेव परिणापिना सात्मकत्वे पाणादिमत्त्वं साधनं नापरिणामिना सर्वथा तदभावात् ।।
यदि नैयायिक यों कहें कि साध्यके न रहनेपर भी इन सत्त्व, प्राणादिमत्त्व, आदि हेतुओंका सद्भाव है, अतः ये समीचीन हेतु नहीं हैं, जैन कहते हैं कि इस प्रकार कहनेपर तो यही आया