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तत्वार्थचिन्तामणिः
नैयायिकों के कहने पर तो हम जैन कहते हैं कि तब तो सत्प्रतिपक्षरहितपना भी हेतुका लक्षण बन गया, जो कि नैयायिकोंने इष्ट किया है । किन्तु वह भी अविनाभाव ही हुआ, इस बातका निवेदन भी हम कर चुके हैं । तिस कारण अन्यथानुपपत्ति न होनेके कारण ही यह प्रमेयत्व हेतु साध्यका गमक नहीं बना। यहांतक कथञ्चित् पक्षका विचार किया । अब दूसरे सर्वथा
पक्षका विचार करते हैं ।
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एतेन सर्वथा भिन्नप्रतिभासत्वं भेदसाधनमगमकमुक्तं कालात्ययापदिष्टत्वसत्प्रतिपक्षत्वाविशेषात् । अवयवादीनां हि सच्चादिना कथंचिदभेदः प्रमाणेन प्रतीयते सर्वथा तद्भेदस्य सकृदप्यनवभासनात् । तत एवासिद्धत्वान्नेदं गमकं सिद्धस्यैवान्यथानुपपत्ति संभवात् ।
इस उक्त कथनकरके द्वितीय विकल्प अनुसार सर्वथा भिन्न प्रतिभासीपना हेतु भी गुण, गुणी, आदि भेदको साधनेमें गमक नहीं है । यह बात कही जा चुकी है । क्योंकि बाधितपना और सत्प्रतिपक्षपना ये दोनों दोष अन्तररहित होते हुये आ जाते हैं । अर्थात् कथंचित् भिन्न प्रतिमासीपन और सर्वथा भिन्नप्रतिभासीपन ये दोनों ही हेतु सर्वथा भेदको साधने में बाधित और सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभास हैं । अवयव अवयवी आदिकोंका सत्त्व, वस्तुत्व आदि हेतुओंसे कथंचित् अभेद हो रहा प्रमाणों द्वारा प्रतीत हो रहा है । सभी प्रकार उनका भेद एक बार भी अद्यावधि नहीं भासता है । तिस ही कारण असिद्ध हेत्वाभास होनेसे यह भिन्न प्रतिभासत्वहेतु सर्वथा भेदका गमक नहीं है । पक्षमें सिद्ध हो रहे ही हेतुकी अन्यथानुपपत्ति मले प्रकार सम्भवती है। यहांतक नैयायिकों के पहिले हेतुका परामर्श हो चुका ।
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तथा पूर्ववत्सामान्यतोऽदृष्टं केवलव्यतिरेकिलिंगं विपक्षे देशतः कार्त्स्यतो वा तस्यादृष्टत्वात् । सात्मकं जीवच्छरीरं प्राणादिमत्त्वात् यन्न सात्मकं तन्न प्राणादिमत् दृष्टं यथा भस्मादि न च तथा जीवच्छरीरं तस्मात्सात्मकमिति । तदेतदपि न परेषां गमकं । साध्यविरुद्धे विपक्षे अननुभूयमानमपि साध्याभावे विपक्षे स्वयमसत्त्वेनानिश्चयात तत्र तत्र तस्य सवसंभावनायां नैकांतिकत्वोपपत्तेः ।
तिसी प्रकार नैयायिकोंने दूसरे पूर्ववत् सामान्यतोऽदृष्टको केवलव्यतिरेकी हेतु माना है । क्योंकि सामान्यतो दृष्टमेंसे अकारका प्रश्लेश निकालकर विपक्षमें एक देशसे अथवा सम्पूर्णरूपसे रहता हुआ वह केवलव्यतिरेकी हेतु नहीं देखा गया है । अतः अन्वयदृष्टान्तके न मिलनेसे यह हेतु अकेले व्यतिरेकको ही धारनेवाला कहा जाता है। जैसे कि यह जीवित हो रहा शरीर
उष्णता आदि से सहित
पक्ष ) आत्मा से सहित है ( साध्य ), प्राण, वायु, नाडी चलना, होनेसे ( हेतु ), जो पदार्थ आत्मासे सहित नहीं है, वे प्राण देखे गये हैं । इस व्याप्ति के भस्म, डेल, आदि दृष्टान्त हैं, ( व्यतिरेक उदाहरण ), ति
आदिसे सहित नहीं
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