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तत्वार्थ लोक वार्तिके
करके उस पूर्वहेतुका सत्प्रतिपचपना कहा गया है । किन्तु उन दोनों दोषोंका व्यवच्छेद करना तो तिस प्रकार साध्य के होनेपर ही हेतुका बना रहनारूप साधने योग्य स्वभावकरके सिद्धकर दिया जाता है । तथा विना कहे यों ही सामर्थ्य से प्राप्त हो गये अन्यथानुपपत्तिरूप स्वभावकरके उन दोषों का निराकरण सिद्ध हो जाता है । इस कारण अबाधितविषयपन आदिको हेतुका न्यारा न्यारा रूप माननेकी कल्पना करना व्यर्थ है ।
सत्यपि तस्य रूपांतरत्वे तन्निश्चयासंभवः परस्पराश्रयणात् तत्साध्यविनिश्चययोरित्याह
उन अबाधित विषयपन, आदिको हेतुका निराळारूपपना " अस्तु अशिष्टतोष " न्याय अनुसार मान भी लिया जाय तो भी उनका निश्चय करना असम्भव है । क्योंकि अबाधितविषयत्व आदि रूपोंसे सहित हो रहे उस हेतुके साध्य और उन रूपोंका विशेष निश्चय करने में अन्योन्याश्रय दोष आता है, इस बातका ग्रन्थकार स्वयं स्पष्टनिरूपण करते हैं, सुनिये ।
यावच साधनादर्थः स्वयं न प्रतिनिश्चितः ।
तावन्न बाधनाभावस्तत्स्याच्छक्यविनिश्चयः ॥ १९३ ॥
तक हेतुसे साध्यरूप अर्थका स्वयं प्रतिज्ञापूर्वक निश्चय नहीं किया जायगा, तबतक उस तुके विषय साध्य में बाधाओंके अभावका विशेषरूपसे निश्चय करना शक्य नहीं होगा । इसी प्रकार हेतुका असत्प्रतिपक्षपना जाननेपर उत्तरहेतुके साध्यका निर्णय होय और साध्यका निर्णय हो जाने पर पूर्व के साध्य में बाधा आनेके कारण उत्तरवर्ती अनुमान के हेतुका असत्प्रतिपक्षपना जाना जाय, यह परस्पराश्रय दोष हुआ ।
सति हि बाघनाभावनिश्वये हेतोरबाधितविषयत्वासत्प्रतिपक्षत्वसिद्धेः साध्य निश्रयस्तनिश्वयाच्च बाधनाभावनिश्चय इतीतरेतराश्रयान तयोरन्यतरस्य व्यवस्था । यदि पुनरन्यतः कुतश्चित्तद्बाधनाभावनिश्चयात्तदनिश्चयांगीकरणाद्वा परस्पराश्रय परिहारः क्रियते तदाप्यकिंचित्करत्वं हेतोरुपदर्शयन्नाहः -
बाधकोंद्वारा बाधा होनेके अभाव का निश्चय हो चुकनेपर तो हेतुके अबाधितविषयपन और असत्प्रतिपक्षपनकी सिद्धि हो जानेसे उस हेतु द्वारा साध्यका निश्चय होय तथा उस साध्यका निश्चय हो जानेसे बाधाओंके अभावका निश्चय होय इस प्रकार अन्योन्याश्रय दोष हो जानेसे उन दोनोंमेंसे एककी भी व्यवस्था नहीं हुई । यदि फिर नैयायिक अन्य किसी हेतुसे उन बाधाओंके अभावका निश्चय मानेंगे अथवा आवश्यकता न होनेके कारण बाधाओंके अभावका निश्चय नहीं होना स्वीकार करेंगे, तब परस्पराश्रय दोषका परिहार तो कर दिया जायगा, किन्तु तब भी हेतु अकिंचि - कर हो जायगा, इस बातको दिखलाते हुये ग्रन्थकार विशदनिरूपण करते हैं ।