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तत्वार्थचिन्तामणिः
एतेन यदुक्तं हेतोरबाधितविषयत्वाभावेऽनुष्णोग्निर्द्रव्यत्वात् नित्यो घटः सत्त्वात् प्रेत्या सुखप्रदो धर्मः पुरुषगुणविशेषत्वादित्येवमादेः प्रत्यक्षानुमानागमबाधितविषयस्यापि गमकत्वप्रसक्तिरसत्प्रतिपक्षत्वाभावे च सत्प्रतिपक्षस्य सर्वगतं सामान्यं सर्वत्र सत्प्रत्यय हेतुत्वादित्येवमादेर्गमकत्वापत्तिरिति तत्प्रत्याख्यातं । प्रत्यक्षादिभिः साध्यविपरीतस्वभावव्यवस्थापनस्य बाधितविषयत्वस्य वचनात् । प्रतिपक्षानुमानेन च तस्य सत्प्रतिपक्षत्वस्याभिधानात् तद्वयवच्छेदस्य च साध्यस्वभावेन तथोपपत्तिरूपेण सामर्थ्यादन्यथानुपपत्तिस्वभावेन सिद्धत्वादवाधितविषयत्वादे रूपांतरत्वकल्पनानर्थक्यात् ।
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और जो यह कहा गया था कि हेतुका अबाधितविषयपनारूप माननेपर अग्नि ( पक्ष ) ठंडी है ( साध्य ), क्योंकि द्रव्य है ( हेतु ) । जैसे कि वस्त्र, पुस्तक, जल आदि ( अन्वयदृष्टान्त ) । तथा घट ( पक्ष ) नित्य है ( साध्य ), क्योंकि वह सत् है । जैसे कि आत्मा, आकाश, कालपर(अन्वान्त ) । और मरकर के दूसरे जन्ममें धर्म करना ( पक्ष ) सुखको देनेवाला नहीं है (साध्य ) | क्योंकि आत्माका गुणविशेष होनेसे ( हेतु ) । जैसे कि पाप कर्म परजन्ममें दुःख दुःख देनेवाला है ( दृष्टान्त ) । इत्यादिक हेतुओं को भी अपने साध्य के बोधकपनका प्रसंग आवेगा । किन्तु अबाधितविषय लगानेसे द्रव्यत्व हेतु समीचीन हेतु नहीं हो पाता है, कारण कि अग्निमें ठंडापन साधनेके लिये दिये गये द्रव्यत्व हेतुका विषय प्रत्यक्षप्रमाणसे बाधित है । और घटमें नित्यपना साधने के लिये दिये गये सस्वहेतुका साध्य नित्यत्व तो, घट ( पक्ष ) अनित्य है ( साध्य ), परिणामी होनेसे ( हेतु ), इस अनुमानसे बाधित है । तथा मरकरके परजम्ममें धर्मसे सुखकी प्राप्ति होती है । इस आगमसे पुरुषगुणविशेषत्व हेतुका साध्य सुख नहीं देना बाधित हो रहा है । अतः हेतुका गुण अबाधितविषयत्व मानना चाहिये तथा हेतुका गुण असत्प्रतिपक्षपना नहीं माननेपर सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभासों को भी साध्य ज्ञापकपनेका प्रसंग हो जायगा, सामान्यस्वरूप जाति ( पक्ष ) सर्वत्र व्यापक है ( साध्य ), क्योंकि सभी स्थलोंपर " है है " इस ज्ञानका कारण होनेसे ( हेतु ), इस अनुमानका प्रतिपक्षी अनुमान यों है कि सदृशपरिणामरूप सामान्य ( पक्ष ) व्यापक नहीं है ( साध्य ), क्योंकि नियत देशव्यापी व्यक्तियोंके साथ न्यारे न्यारे सामान्य तदात्मक हो रहे हैं ( हेतु ), यदि सामान्य व्यापक होता तो दूरवर्ती दो व्यक्तियोंके अन्तरालमें भी दीखना चाहिये था । इसी प्रकार शब्द नित्य है, प्रत्यभिज्ञानका विषय होनेसे, इसका प्रतिपक्ष शद्ब अनित्य है, कृतक होनेसे, यह विद्यमान है । इत्यादि सत्प्रतिपक्ष हेत्वाभासोंको गमकपनका प्रसंग हो जायगा । उसका निवारण करनेके लिये हेतुका गुण असत्प्रतिपक्षपना कहो । इस प्रकार दोनों गुणोंके लिये जो नैयायिक उत्साहित कर रहे थे, वह भी इस उक्त कथनसे खंडित कर दिया गया समझ लेना चाहिये । क्योंकि प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों करके साध्यसे विपरीत स्वभावकी व्यवस्था करा देना ही तो बाधित विषयपना कहा गया है। और प्रतिपक्ष साधनेवाले दूसरे अनुमान
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